ग्वालियर, अतुल सक्सेना। तैयार फसल में कीड़ा लग जाने अथवा किसी रोग के आक्रमण से किसान की पूरी मेहनत बेकार चली जाती है और उसे बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। लेकिन फिलहाल उसे चिंता करने की जरुरत नहीं है। सरकारी स्तर पर उसके लिए मदद के हाथ आगे आये हैं।
खरीफ के मौसम में धान की फसल (Paddy Crop) ग्वालियर जिले (Gwalior News) की एक प्रमुख फसल है। धान की फसल पर कीड़ा लगने और विभिन्न रोगों के आक्रमण की संभावना रहती है। धान की फसल को इससे बचाने के लिए मध्य प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग (MP Agriculture Department) ने जिले के किसानों को उपयोगी सलाह दी है।
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धान की फसल में कीड़ा या कोई रोग दिखाई देने पर किसान भाई विकासखण्ड स्तर पर वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी व मैदानी कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क स्थापित कर इस पर नियंत्रण के लिए सलाह ले सकते है। प्रशासन ने किसानों की मदद के लिए अधिकारियों के नाम और मोबाइल नंबर जारी किये हैं।
इन मोबाइल नंबरों पर किसान भाई कर सकते हैं संपर्क
प्रशासन के अनुसार आरएलएस कुशवाह विकासखंड मुरार (9826220433), एसके पचौरी विकासखंड मुरार (9713370394), सुघर सिंह कुशवाह विकासखंड घाटीगांव (9926558853), आरबीएस भदौरिया विकासखंड घाटीगांव (9893939331), एके वर्मा विकासखंड डबरा (9425777279) एवं विनोद तिवारी विकासखंड भितरवार (9171332863) से धान सहित अन्य फसलों की बीमारियाँ व कीट व्याधि नियंत्रण के लिये किसान भाई संपर्क कर सकते हैं।
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धान की प्रमुख बीमारियाँ, लक्षण व उनसे बचाव के उपाय (disease in paddy)
ब्लावस्टस रोग – इस रोग में पत्तियों पर आंख या नाव जैसे धब्बे बनते हैं जो बाद में राख जैसे सिलेटी रंग के हो जाते है। साथ ही पुष्प और ग्रीवा भी काले रंग की हो जाती है। इस रोग से बचाव के लिए खड़ी फसल में ट्राईसाइक्लोजॉल एक ग्राम या कार्बन्डौजिम या मैनकोजैव 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।
जीवाणु पत्ती अंगमारी रोग – इस रोग में पत्तियां लिपटकर नीचे की ओर झुक जाती है और उनका रंग पीला या भूरा हो जाता है। इस रोग के नियंत्रण के लिये 100 ग्राम स्ट्रेप्टोहसाइक्लिनन और 500 ग्राम कॉपरआक्सीक्लोराइड का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
भूरी चित्तीक रोग – इस रोग में पत्तियों पर गोल अण्डाकार, आयताकार तथा भूरे व काले रंग के धब्बे बन जाते हैं। यह धब्बे आपस में मिलकर बड़े हो जाते है और पत्तियों को सुखा देते है। इसके नियंत्रण के लिये संतुलित उर्वरकों का उपयोग करने के साथ ही कार्बन्डौजिम या मैनकोजैव 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।
खेरा रोग – यह रोग जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग में निचली पत्तियां पीली पड़नी शुरू हो जाती हैं और बाद में पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे उभरने लगते है। इस रोग के नियंत्रण के लिये 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 2.5 किलोग्राम बुझा हुआ चूने का मिश्रण करके 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेपयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
कण्डलवा रोग – यह रोग लगने से धान की फसल में बालियों या दाने में कोयला जैसा पाउडर भर जाता है। इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोथानोमिल 2 ग्राम प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है।
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धान पर लगने वाला प्रमुख कीड़ा (worm in paddy crop)
गंधी बग – यह पतला हरे भूरे रंग का उड़ने वाला कीट होता है। इसके शिशु एवं वयस्क दूधिया दानों को चूंसकर हानि पहुँचाते हैं। इसके नियंत्रण के लिये प्रकाश प्रपंच का उपयोग करने के साथ ही रासायनिक तरीके से नियंत्रण के लिए ऐसीटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस.सी., बुफ्रोजिन 25 प्रतिशत एससी 25 कि.ग्रा. प्रतिहेक्टे यर अथवा 750 एम.एल. का छिड़काव करना उचित रहता है।
धान का तना छेदक कीट – इस कीट के प्रकोप से बालियाँ सूखकर सफेद हो जाती है तथा दाने नहीं बनते हैं। इसके नियंत्रण के लिए कारबोफ्यूरान 3जी या कार्टेपहाईड्रो क्लोनराईड 4जी 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर का भुरकाव करना चाहिए ।
लीफरोलर (पत्ती लपेटक) – इस कीट की इल्ली हरे रंग की होती है, जो अपनी लार से पत्ती के दोनों किनारों को जोड़कर लपेट लेती है। बाद में पत्तियां सूख जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए ट्राइजोफॉस 40ईसी, प्रोफेनोफॉस 44ईसी सायपरमेथ्रिन 4ईसी 1 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर के मान से लगभग 4 से 5 ड्रम पानी घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।