एचआईवी पीड़ित मरीजों के लिये आईसीटीसी बैतूल वरदान साबित हो रहा है। यहां लॉक डाउन में भी नही रुका दवाई वितरण का कार्य। महाराष्ट्र ,उत्तर प्रदेश ,छत्तीसगढ़ एवं अन्य राज्यों से बैतूल में जो मरीज फंसे थे, उन्हें भी दवाइयां उपलब्ध कराई गई । जहां सारी दुनिया कोरोना के डर से घर में थी वही मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की दो महिलाएं भयंकर बीमारी एचआईवी से ग्रस्त मरीजों को दवा उपलब्ध करवाने में लगी थीं। यह कहानी है बैतूल जिला चिकित्सालय के आईसीटीसी में पदस्थ दो महिलाओं की, जिनमें लैब टेक्नीशियन अलका गलफट और काउंसलर अनीता लोखंडे शामिल हैं।
दरअसल बैतूल जिले में 605 एचआईवी पीड़ित मरीज रजिस्टर्ड है। एचआईवी एक ऐसी बीमारी है इसका स्थायी इलाज नहीं है और जब तक जिंदगी रहेगी तब तक उसकी दवा खाना जरूरी है। इन मरीजो के सामने लॉक डाउन एक बड़ी समस्या थी कि वे कैसे अपनी दवाई आईसीटीसी सेंटर से लें। एचआईवी के मरीज़ों के लिए हर रोज़ दवा लेना बेहद ज़रूरी है । अगर एक भी दिन दवा छूटी तो एचआईवी के विषाणु फिर से सक्रिय होने का ख़तरा होता है। इससे उनके पूरे पुराने इलाजे पर पानी फिर सकता है। अगर किसी वजह से दवाइयां रुक जाए तो दूसरी लाइन शुरू करनी पड़ती है, और दूसरी लाइन की दवा हर अस्पताल में मौजूद नहीं होती है। इससे लॉकडाउन के दौरान मरीज़ों में डर बढ़ गया था।
ऐसी परिस्थितियों में बैतूल चिकित्सालय में स्थित आईसीटीसी सेंटर में पदस्थ लैब टेक्नीशियन अलका गलफट और काउंसलर अनिता लोखंडे ने इन मरीजो के प्रति संवेदनशीलता का परिचय देते हुए इन्हें समय दवाईयां उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया गया। यही नहीं पूरे लॉकडाउन में 23 मार्च से 31 मई तक टेस्टिंग का कार्य भी नही रुका। इन्होंने इस दौरान 860 टेस्ट किये। इन टेस्ट में 596 गर्भवती माताओं के टेस्ट और रजिस्ट्रेशन का कार्य किया गया। टोटल 605 मरीजो को दवाइयां उपलब्ध कराई गई जिनमें से बैतूल जिले के 202 मरीज शामिल हैं। इसके अलावा 190 मरीज महाराष्ट्र ,उत्तर प्रदेश ,छत्तीसगढ़ एवं अन्य राज्यों से जो मरीज बैतूल में फंसे थे उन्हें भी दवाइयां उपलब्ध कराई गई। 213 ऐसे मरीज थे जो भोपाल एवं मध्य प्रदेश के अन्य जिलों में रजिस्टर्ड है और उन्हें दवाई वहां से मिलती थी। लेकिन लॉक डाउन के कारण वो वहां पर जा नही पा रहे थे , ऐसी स्थिति में उन्हें यहां से दवाई उपलब्ध कराई गई।
सबसे खास बात यह है कि लॉक डाउन में जो मरीज आईसीटीसी सेंटर नही आ पा रहे थे उन्हें टीआई प्रोग्राम के हेल्थ वर्कर और आहना प्रोजेक्ट के माध्यम से उनके घर दवाई भेजी गई। इस कार्य मे यह भी ध्यान रखा गया कि एचआईवी मरीज की गोपनीयता बरकरार रहे। अलका का कहना है कि ऐसे मरीजों की सेवा करना हमारा धर्म है क्योंकि दवाई ही उनकी जिंदगी है।अनिता का कहना है कि जो कार्य वो कर रही वो बहुत ही पुण्य कार्य है, वो मरीजों की काउंसलिंग करती हैं। इन मरीजों के प्रति घृणा नहीं बल्कि इनके प्रति सहानुभूति होनी चाहिए, क्योंकि छूने एचआईवी नही फैलता। जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन डॉ अशोक बारंगा ने दोनों के कार्य की सराहना करते हुए कहा कि उनके स्टाफ की दोनों सदस्यों को जो भी कार्य सौंपा जाता उसे वे बखूबी करती है।