इटारसी से है महात्मा गांधी का पुराना नाता, जिस कक्ष में रुके वहां है संग्रहालय

Gaurav Sharma
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होशंगाबाद/इटारसी,राहुल अग्रवाल। 2 अक्टूबर मोहनदास करमचंद गाँधी यानी महात्मा गांधी की जयंती है। आज बापू हमारे बीच नही है पर उनकी कही हुई बाते और संघर्ष आज भी हमे मार्गदर्शित करते है। बापू के संघर्ष की कहानी बहुत लंबी है पर आज का विषेषांक बापू के इटारसी प्रवास पर है। बापू का इटारसी से पुराना नाता रहा है। इटारसी के गोठी धर्मशाला में बापू ने एक दिन रुक कर विश्राम किया था। आज भी वो कक्ष वही है और वैसा ही है जिसे संग्रहालय का रूप दिया जा चुका है। जहां आज बापू के प्रवास के समय की वस्तुएं और उनका लिखा हुआ लेटर सुरक्षित रखा हुआ है ।

इटारसी से है महात्मा गांधी का पुराना नाता, जिस कक्ष में रुके वहां है संग्रहालय

यह धर्मशाला इटारसी के वरिष्ठ गांधीवादी विचारक समीर मल गोठी के परिवार का है। धर्मशाला का इतिहास 1907 के करीब का है। समीरमल के पौत्र हनी गोठी बताते है कि धर्मशाला बनाने का उद्देश्य इटारसी स्टेशन पर आने जाने वालो को अच्छा आश्रय मिल सके इसलिए बनाया गया था क्योंकि उस जमाने मे होटल लॉज नही हुआ करते थे। खास बात यह थी कि धर्मशाला में जात पात नही मानते थे यही बात बापू को भा गई थी। उन्होंने अपने लेटर में इसका स्पष्ट उल्लेख किया है कि इस धर्मशाला में हम लोगों को आश्रय दिया गया इसके लिए हम सब संचालकों का आभार मानते है। यह जानकर की स्वच्छता से रहने बाले हरिजनों को भी यहां स्थान मिलता है बहुत हर्ष हुआ

 

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न सिर्फ बापू बल्कि आजादी की लड़ाई में आपने योगदान देने बाले सेनानी भी यहां आचुके है। देश के पहले प्रधनमंत्री प.जवाहरलाल नेहरू -22 अप्रेल 1935 में नागपुर जाते समय यहां कुछ समय के लिए रुके थे उनके द्वारा लिखा लेटर भी यहां है। साथ ही पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी साल 1935 में 14 अगस्त को वर्धा से प्रयाग जाते समय तीन घंटे रुके थे।

काका कालेलकर ने भी साल 1935 में 13 जुलाई में प्रयाग जाते समय 2 घंटे रुके ओर आराम किया था। वहीं सुचेताबेन कृपलानी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थी ये उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बनी और भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री थी वे प्रसिद्ध गांधीवादी नेता आचार्य कृपलानी की पत्नी थीं। वो साल 1945 में 17 नबंर को दिल्ली जाते समय 2 दिन रुकी थी। रविशंकर शुक्ल 1 घण्टे यहां रुके थे। गोठी धर्मशाला आज भी यात्री के लिये खुली हुई है और जैसी पहले थी वैसी ही अभी भी है।

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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