बीजेपी के सबसे बड़े दलित चेहरे और केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत हाथरस गैंगरेप पीड़िता पर पूछे सवाल से हुए नाराज

Gaurav Sharma
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इंदौर, आकाश धोलपुरे। ठीक 2 बजकर 50 मिनिट पर केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत का एक ट्वीट सोशल मीडिया पर नजर आता है, जिसमें उन्होंने बकायदा पूरे जोश के साथ, कृषि सुधार और किसान सशक्तिकरण हेतु पीएम मोदी के कुशल नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा लाये गए ऐतिहासिक विधेयकों पर शाम 4 बजे इंदौर में प्रेस वार्ता करने की जानकारी दी और पता दिया भाजपा कार्यालय इंदौर, मध्यप्रदेश।

 

लेकिन जैसे ही प्रेस वार्ता शुरू हुई तो शुरू में उन्होंने व्यापार विधयेक और पास किये कृषि बिलो का जिक्र कर एक उपलब्धि को गिनाया, इतना ही नहीं बिल का विरोध करने वाली कांग्रेस और बीजेपी का साथ छोड़ देने पर अकाली दल पर उन्होंने राजनीतिक हित का हवाला देकर निशाना साधा। अब जब उन्होंने अपनी बात खत्म की तो सबसे पहले सवाल उठा यूपी के हाथरस की निर्भया के साथ दबंगों द्वारा किये गए दुष्कर्म के बाद मौत के मामले में अचानक अंतिम संस्कार कर देना सहित अन्य सवालो की बौछार उठी तो अचनाक बीजेपी के सबसे बड़े दलित चेहरे याने की केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत से दलित बेटी को लेकर किये गए सवाल पर ही तिलमिला उठे और झल्लाकर उन्होंने बीच में ही प्रेस कांफ्रेंस छोड़कर जाने लगे। इसके बाद जो हुआ वो भी मीडिया के कैमरे में कैद होगया।

दरअसल, सामाजिक न्याय की दुहाई देने केंद्रीय मंत्री इसलिये भी तिलमिलाए क्योंकि यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार और गठित की एसआईटी पर उन्हें पूरा भरोसा है। लेकिन उनके पास इस बात का जबाव नही है कि हाथरस में मीडिया को जाने से क्यों रोका जा रहा है। साथ ही उनके पास दलित बेटी के मामले में अब तक कोई जानकारी ही सामने नही आई है। हालांकि इंदौर में उन्होंने यूपी सरकार और उनके विभाग द्वारा लगाए जा रहे मुआवजे के मरहम को जरूर एक सफलता में मानते हुए खुद पर ही सवाल खड़े कर दिए। क्योंकि अब सवाल ये उठ रहा है दलितों की मुखर आवाज़ होने का दावा करने वाले केंद्रीय मंत्री को ही इस बात की जानकारी नहीं है कि कहा क्या और कैसे कब हो गया। वो तो सिर्फ इतने लंबे राजनीतिक सफर में आज सिर्फ कुर्सी बचाते नजर आए। इसलिए एक दफा कुर्सी से उठने पर उन्होंने कहा कि मैं जिस मुद्दे पर बात करना चाहता हूं मीडिया उस पर तो सवाल ही पूछ रहा है और वे कुर्सी छोड़कर जाने लगे लेकिन अचानक जब मीडिया ने उनसे उनके मुताबिक प्रश्नों के उठाने पर हामी भरी तो प्रेस कांफ्रेंस के बाद वो ये भी कहते नजर आए अब तो ठीक है।

 

इंदौर में आज जो कुछ केंद्रीय मंत्री की प्रेस कांफ्रेंस में हुआ उससे ये तो बहुत हद तक साफ हो गया कि जब राजनीति में कुर्सी बचाने का वक्त आता है तो कुछ देर के लिए ही सही मीडिया के सामने रखी कुर्सी से उठ जाने का भी कोई गम नहीं होता है। अब सवाल उन दलितों का भी है कि आखिर कैसे वो हाथरस की निर्भया के इंसाफ के लिए बीजेपी के सबसे बड़े दलित चेहरे पर विश्वास करे।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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