कंगना रनौत ने फिर लिया पंगा, इंदौर का यादव समाज जमकर कर रहा विरोध

Gaurav Sharma
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इंदौर, आकाश धोलपुरे। किसानों द्वारा किये जा रहे कृषि विधयेक बिल के विरोध के मामले में देशभर में कोहराम मचा हुआ है। ऐसे में फ़िल्म एक्ट्रेस कंगना रनौत ने किसानों के मुद्दों पर एक ट्वीट किया है जिस पर अब बवाल खड़ा हो गया है। दरअसल ट्वीट के जरिए कंगना ने बिल का विरोध करने वालों पर निशाना साधा है। कंगना रनौत ने ट्वीट कर लिखा,”जैसे श्री कृष्ण की नारायणी सेना थी, वैसे ही पप्पू की भी अपनी एक चंपू सेना है जो की सिर्फ़ अफ़वाहों के दम पे लड़ना जानती है, यह है मेरा ऑरिजिनल ट्वीट, अगर कोई यह सिद्ध करदे की मैंने किसानों को आतंकी कहा, मैं माफ़ी माँगकर हमेशा के लिए ट्वीटर छोड़ दूँगी”

इधर, इंदौर में कंगना के ट्वीट का विरोध जमकर किया जा रहा है। रविवार को शहर के रीगल तिराहे पर राष्ट्रीय यादव सेना और नारायणी सेना से जुड़े यादव समाजजनों ने फ़िल्म एक्टर कंगना रनौत के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। गांधी प्रतिमा के नीचे यादव सेना से जुड़े कार्यकर्ताओं ने हाथों में तख्तियां लेकर कंगना को होश में रहने की हिदायत दी है।

 

राष्ट्रीय यादव सेना ने कहा कंगना रनौत को यादव समाज से माफी मांगनी चाहिए क्योंकि उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया और नारायणी सेना का भी। यादव सेना ने चेतावनी दी है कि कंगना तोल मोल के बोले और कैसे उन्होंने नारायणी सेना की तुलना कांग्रेस के राहुल गांधी से कर दी। अब यादव सेना कंगना के ट्वीट को लेकर मुकदमा दर्ज करने की बात कह रही है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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