यहां व्यापारियों ने की तीन दिन के लॉकडाउन की घोषणा, प्रशासन की अनुमति का इंतजार

Gaurav Sharma
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जबलपुर,संदीप कुमार। प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में रोजाना 200 से ज्यादा कोरोना के मरीज सामने आ रहे हैं। इसके साथ ही कोरोना संक्रमितों की मृत्यु संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में शहर में अब शहरवासियों के बीच कोरोना संक्रमण का डर सताने लगा है। कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए जिले में पहले हर शनिवार और रविवार को टोटल लॉकडाउन रखा जाता था, लेकिन कुछ दिनों पहले ही इसे पूरी तरह से खोल दिया गया है, ऐसे में अब जबलपुर के व्यापारी संघ ने स्वेच्छा से तीन दिन तक दुकानें बंद रखने का फैसला लिया है।

जबलपुर के मुकादम गंज इलाके में कोरोना संक्रमण की चपेट में आने की वजह से पांच व्यापारियों की मृत्यु हो चुकी है। बाजार में 24 से ज्यादा कोरोना संक्रमित मरीज हैं, इसी के मद्देनजर व्यापारियों ने तीन दिन बाजार बंद रखने की घोषणा की है। व्यापारियों का कहना है की वे जान की कीमत पर व्यापार नहीं करना चाहते हैं। भले ही सरकार ने बाजार को खोलने की अनुमति दे दी है, लेकिन इस घने बाजार में व्यापार करने के दौरान कोई भी कोरोना संक्रमण का शिकार हो सकता हैं, इसलिए उन्होंने स्वेच्छा से ही अपनी दुकानों को तीन दिनों के लिए बंद रखने का फैसला लिया है।

जानकारी के मुताबिक प्रशासन ने किसी भी तरह के बंद को अब तक कोई अनुमति नहीं दी है। व्यापारियों ने स्वेच्छा से बंद करने का फैसला लिया है, जो कि गैर कानूनी है। अब देखते हैं कि प्रशासन इम मामले में क्या कार्रवाई करता है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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