जबलपुर,संदीप कुमार। मध्यप्रदेश में बीते 5 सालों से कॉलेज और विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ के चुनाव नहीं हुए हैं लेकिन छात्रों से हर साल करोडों रुपयों का चुनाव शुल्क वसूला जा रहा है। जबलपुर (jabalpur) का रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ही जब बीते 5 सालों में छात्रसंघ चुनाव के लिए 1 करोड़ रुपए वसूल चुका है तो खुद आरएसएस के अनुषांगिक संगठन एबीवीपी ने सरकार को छात्र संघ चुनाव ना करवाने पर खामियाजा भुगतने की चेतावनी दी है। इधर कांग्रेस सरकार को ये कहते हुए घेर रही है कि वो युवाओं के मुद्दे से डरकर छात्रसंघ चुनाव नहीं करवा रही है।
इस मामले में उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के एक बयान से छात्रसंघ चुनाव पर सियासत गर्मा गई है। छात्रसंघ चुनावों को राजनीति की पाठशाला माना जाता है। आज देश प्रदेश की राजनीति में चमकते कई सितारे छात्र संघ चुनावों की बदौलत ही ये मुकाम बना पाए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में छात्र संघ चुनाव की व्यवस्था इसीलिए लागू की गई थी कि छात्र ना सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था को गहराई से समझें बल्कि अपने हितों की आवाज़ उठाकर अपने मुद्दों का निराकरण भी करवा सकें।
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इधर जब मध्यप्रदेश में साल 2017 के बाद से छात्रसंघ चुनाव नहीं करवाए गए हैं तो इस मुद्दे पर सियासत गर्मा गई है। विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनावों की मांग को लेकर आए दिन विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इधर एबीवीपी ने इस साल छात्रसंघ चुनाव ना होने पर सरकार को खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी है। हंगामा इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि चुनाव ना करवा कर भी प्रदेश के विश्वविद्यालय चुनाव शुल्क से मालामाल हो रहे हैं।
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जबलपुर का रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय हर छात्र से 150 रुपयों की राशि छात्र संघ चुनाव के रुप में लेता है। विश्वविद्यालय बीते 5 सालों में करीब 1 करोड़ रुपए जबकि प्रदेश के तमाम विश्वविद्यालय छात्रों से करीब 10 करोड़ रुपए वसूल चुके हैं लेकिन चुनाव नहीं हुए। इस बीच कांग्रेस ने भी छात्र संघ चुनाव करवाने की मांग करते हुए सरकार पर युवाओं के मुद्दों से डरने का आरोप लगाया है।
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हालाँकि उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव का कहना है कि स्थनीय निकाय चुनावों के कारण अब छात्रसंघ चुनाव पहले जैसी अहमियत नहीं रखते लेकिन सरकार फिर भी चुनाव करवाने पर विचार कर रही है। छात्रसंघ चुनावों की अब पहले जैसी अहमियत ना बताने के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के बयान पर भी सियासत गर्मा रही है लेकिन देखना होगा कि अगर मिशन 2023 से पहले भी छात्रसंघ चुनाव नहीं होते हैं तो सियासी समीकरणों में नफा नुकसान किसका होता है।