खंडवा। सुशील विधानी| निर्वाचन आयोग की सख्ती ने उम्मीदवारों के पैरों में चकरी बांध दी है। मतदान की तारीख पास आते ही प्रत्याशियों की धड़कनें तेज हो गई हैं। मतदाता भी समझ नहीं पा रहे हैं कि किसे वोट दें? खंडवा सीट पर तो चार-चार उम्मीदवार विधायक बनने के लिए पैदल ही शहर का घर घर नाप रहे हैं। शोर-शराबे से नहीं बल्कि खुद की मेहनत और बूथ मैनेजमेंट के जरिये ही चुनाव जीतने का मतलब समझ रहे हैं।
खंडवा सीट पर घमासान चार कोणीय है। यहां कांग्रेस प्रत्याशी कुं दन मालवीय अलग गणित में रणनीति बना रहे हैं। हिंदूवादी समर्थन के लिए कौशल मेहरा भाजपा को नुकसान पहुंचाने में लगे हैं। भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र वर्मा चुपचाप प्रचार कर रहे हैं। उनका विरोध होने का कारण पिछले दस साल से विधायक रहकर कुछ नहीं करने का है। इसका फायदा कांग्रेस उठा सकती है। कांग्रेस के बागी व सपाक्स के टिकिट से कूद राजकुमार कैथवास भीतराघाती जैसी रणनीति से कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की ताक में हैं। हालांकि मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस में होगा, लेकिन चार कोणीय मुकाबले के चलते भाजपा में भीतराघात की संभावना है।
उम्मीदवारों की धड़कनें तेज, आयोग की सख्ती का भी असर
मतदान की तारीख नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की धड़कनें भी बढ़ते जा रही हैं। नाम वापसी और चुनाव चिन्ह आवंटित होने के बाद प्रचार कार्य की शुरुआत तो हुई है। लेकिन भाजपा-कांग्रेस सहित भाजपा से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवार शोर युक्त चुनाव प्रचार की अपेक्षा मतदाताओं से सीधा संपर्क साधने में जुटे हुए हैं। ताकि मतदान के दिन मतदाता उनके पक्ष में मतदान कर सके। प्रशासन द्वारा चुनाव आचार संहिता का पालन कराए जाने के लिए सख्ती बरती जा रही है। सख्ती का असर इस चुनाव में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। सार्वजनिक और सरकारी संपत्ति पर ना तो बैनर पोस्टर होर्डिंग लगे हैं और ना ही दीवारों पर बड़े-बड़े पोस्टर दिखाई दे रहे हैं। उम्मीदवार अपने समर्थक भवन मालिकों के घर पर ही बैनर पोस्टर लगवा रहे हैं। प्रशासन की सख्ती से चुनाव की जो रौनक पूर्व के चुनाव में दिखाई देती थी वह पूरी तरह गायब हो चुकी है।
भुगतना पड़ सकता है खामियाजा
खंडवा विधानसभा क्षेत्र में भले ही भाजपा के शासनकाल में विकास कार्य कराए जाने का दावा किया जा रहा है लेकिन जिस तरह से जिला मुख्यालय पर पिछले 3 वर्षों से विकास कार्यों के नाम पर जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है उसको लेकर भाजपा नेताओं से जवाब देते नहीं बनता चाहे वह नर्मदा जल के दौरान बर्बाद की गई सड़कों की दुर्दशा हो या फिर निर्माण कार्यों में की जा रही लेटलतीफी के साथ ही निर्माण एजेंसियों की मनमानी पर अंकुश लगाने प्रशासन असमर्थ रहा है इसको लेकर शहरवासियों में जनप्रतिनिधि और अधिकारियों के प्रति जो गुस्सा था वह गुस्सा वोट के रूप में सामने आने पर उम्मीदवारों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। वहंी दूसरी ओर विपक्षी दल की बात करे तो पांच साल विपक्ष की भूमिका मीडिया द्वारा निभाई गई क्योंकि उखड़ी हुई सड़कें, नर्मदाजल मुद्दा, मूलभूत सुविधाओं की खबरों की सुर्खियां बनी रही। यही वजह है कि विपक्षी दल भी अपनी मजबूती इस चुनाव में नहीं दिखा पा रहा है।
जनसंपर्क में झोंकी ताकत
चुनाव चिन्ह मिलने के बाद खंडवा विधानसभा क्षेत्र से राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों सहित निर्दलीय उम्मीदवार भी दल-बल के साथ मैदान में उतर चुके हैं। उम्मीदवार शोर-शराबे वाले प्रचार से तौबा करते हुए अपने खास समर्थकों की भीड़ लेकर मतदाताओं के घर पहुंचकर अपने लिए वोट मांग रहे हैं।
चार कोणीय मुकाबले के आसार
कहने को तो खंडवा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने के लिए कुल 7 उम्मीदवार चुनाव मैदान में डटे हुए हैं। लेकिन इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर की संभावना कम ही दिखाई दे रही है। भाजपा से बगावत कर मैदान में उतरे कौशल मेहरा और कांग्रेस से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरे राजकुमार कैथवास की उम्मीदवारी ने इस चुनाव को रोचक बना दिया है। भाजपा और कांग्रेस के दोनों बागी उम्मीदवारों के पास व्यापक जनाधार होने से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की मुसीबतें बढ़ गई है। ऐसे में इस विधानसभा क्षेत्र से चतुष्कोणीय मुकाबले में कौन बाजी मारेगा यह बताना काफी मुश्किल नजर आ रहा है।
सबको आशीर्वाद दे रहे मतदाता
मतदाता अपने दरवाजे पर आ रहे सभी उम्मीदवारों को स्वागत करते हुए उन्हें समर्थन का भरोसा तो दिला रहे हैं लेकिन मतदाताओं का मूड मतदान के दिन किस करवट बैठेगा? इसको लेकर उम्मीदवार आश्वस्त नहीं है। इसी तरह कुछ क्षेत्रों में जनप्रतिनिधियों को आक्रोश का सामना भी करना पड़ रहा है। जिसके कारण प्रत्याशी चुनाव प्रचार भी नही कर पा रहे है। इनके कार्यालयों की बात करे तो यहां से भी अच्छी खबर नहीं आ रही है। गुटबाजी संगठन में तू-तू, मैं-मैं की सूचनाएं मिल रही है! सबसे बड़ी बात तो यह नजर आ रही है कि इस बार मतदाता पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं। मतदाताओं की यही चुप्पी उम्मीदवारों को खल रही है इस बार के चुनाव में माहौल किसके पक्ष में बना हुआ है यह भी राजनीतिक पंडित अनुमान लगाने में असहाय बने हुए है।