खंडवा, सुशील विधाणी। प्रदेश के वन मंत्री डॉ कुंवर विजय शाह आज जिला अस्पताल पहुंचे, जहां उन्होंने वन विभाग के 2 घायल कर्मचारियों से भेंट की और चिकित्सकों से बेहतर से बेहतर इलाज कराने की बात कही। साथ ही कर्मचारियों को स्वास्थ्य लाभ के लिए इंदौर या भोपाल जैसे शहर में भी पहुंचाया जाएगा।
डॉ कुंवर विजय शाह ने पत्रकारों से चर्चा के दौरान कहा कि कुछ लोग वन के लोगों को गुमराह कर रहे हैं, जंगल काट रहे हैं, पट्टों का लालच दे रहे हैं। यह समाज का प्रदेश का देश का बुरा कर रहे हैं। हम इन से सख्ती से निपटेंगे। आज हमारे 1 कर्मी बुरी तरह पीटते रहे, लेकिन उन्होंने हमला नहीं किया। लेकिन इस प्रकार की घटना के बाद हम 2005 के पट्टों का 15 से 20 दिनों में निराकरण करेंगे।
अब उन मानसिकता के लोगों को पहचानना पड़ेगा जो भोले-भाले आदिवासियों को गुमराह कर रहे हैं। कुछ बाहर के लोग आकर जंगल की कटाई करते हैं। आखिर ऐसे लोगों को कौन सपोर्ट कर रहा है। कौन संस्था साथ दे रही है। इसकी जांच कराई जाएंगी और सख्ती से निपटेंगे।
जब जंगल काटता है तो उसका लाभांश का 50% भागीदारी आदिवासियों की और 1 समिति को दी जाती है। हमारे अधिकार से पहले वन पर वनवासियों का अधिकार है। वनवासियों के अधिकारों को छीनने वालों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई करेंगे। हम उन्हें छोड़ेंगे नहीं यह बात वन मंत्री कुंवर विजय शाह ने कही। उन्होंने कहा कि मैं क्षेत्र में जाऊंगा जहां पर यह घटना हुई, उन वन परिक्षेत्र के आदिवासियों से बात करूंगा और प्रशासन के पूरे अधिकारी जाएंगे।
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Gaurav Sharma
पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।
इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।