झूठ बोलकर लोगों को लूटने वाले प्रायवेट कोविड सेंटर पर मेहरबान प्रशासन

Gaurav Sharma
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मन्दसौर, तरुण राठौर। शहर सहित जिले में कोरोना का मामला तेजी से बढ़ रहा है। रोजाना 2 दर्जन से अधिक कोविड मरीज सामने आ रहे है। जिन्हें प्रशासन द्वारा प्राइवेट कोविड सेंटर में रहने की समझाइश दी जा रही है। वहीं अगर मरीज प्रायवेट सेंटर में नहीं रहना चाहता है, तो उससे होम आइसोलेशन कर रहे है। ऐसे में मरीज मजबूरी में प्राइवेट कोविड सेंटर को चुन रहे है। जहां पर ये प्रायवेट कोविड संचालक उन मरीजों को जमकर लूट रहे है। वहीं पांच दिन का रहने का बिल ही 50 से 60 हजार बना रहे है। इन बिलो में जिन सुविधा को जोड़ा जा रहा है, उन सब का दाम बाजार मूल्य से चार गुना ज्यादा है। ऐसे में मरीज न चाहते हुए इन प्रायवेट कोविड सेंटर को 50 हजार से लेकर 60 हजार तक का बिल चुका रहा है।

झूठ बोलकर लोगों को लूटने वाले प्रायवेट कोविड सेंटर पर मेहरबान प्रशासन

यदि इन सेंटरों में किसी मरीज की हालत थोड़ी भी बिगड़ जाती है तो उसे आगे का इलाज किए बिना रैफर कर दिया जाता। उससे दो गुने पैसे सुविधा के नाम पर ले लिए जाते है। यदि कोई व्यक्ति देने में आना कानी करता है तो उससे वहां से छोड़ा नहीं जाता है। मानो जैसे मरीजों के साथ ये प्रायवेट कोविड सेंटर रंगदारी कर रहे है पर प्रशासन है कि इनकी इतनी दादागिरी के बाद भी इन पर कोई कार्रवाई नहीं करती। उल्टा उन्हें प्रोत्साहन देती है। क्योंकि इन कोविड सेंटर खोलने की इजात प्रशासन के अधिकारियों ने जो सेटिंग करके अपनी मोटी कमाई के लिए दी।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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