मंदसौर, तरूण राठौड़। सुवासरा विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव की बिसात बिछ चुकी है। ये उपचुनाव पिछली बार के चुनाव के बिल्कुल उलट है। पहले जहां पाटीदार के सामने सरदार को उतारा था वह अब भाजपा में चले गए हैं और इस समय भाजपा की ओर से सरदार चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं सरदार के सामने कांग्रेस ने पाटीदार उम्मीदवार उतार दिया है जबकि पिछली बार भाजपा ने पाटीदार को मौका दिया था। मतलब चुनाव वही पर दोनों तरफ से सामाजिक समीकरण बदल गए हैं। इस कारण चुनाव की तस्वीर भी बदल गई है।
पहले हरदीपसिंह डंग को कांग्रेस ने दो बार सुवासरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया था और वह राधेश्याम पाटीदार को हराकर विधायक बने थे। लेकिन सरकार बदलते ही वह भी भाजपाई हो गए और पूरी तरह भगवा रंग में रंग गए हैं। वो इस उपचुनाव में कमल के निशान की तरफ से लड़ रहे हैं। वहीं कांग्रेस ने उनके सामने राकेश पाटीदार को उतारा है। अब देखना यह है कि सरदार कांग्रेसी पाटीदार को हरा पाएगे या फिर उनसे हार जाएंगे। यही सवाल इस समय क्षेत्र में सभी लोगो के मन में पनप रहा है।
वैसे सुवासरा का इतिहास बता रहा है कि यहां हमेशा से पाटीदारों का बोलबाला रहा है। इसीलिए वहां से पाटीदारों ने सबसे ज्यादा चुनाव लड़ा है और जीते भी हैं। जबकि चंद ही मौके है जब इस क्षेत्र की सीट किसी ओर समाज के खाते में गई हो। इस बार जैसे ही कांग्रेस ने पाटीदार समाज के उम्मीदवार को चुनाव में उतारा, वैसे ही पाटीदार समाज के लोग क्षेत्र में एक बार फिर से एक होने लगे ओर कांग्रेसी पाटीदार को जिताने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, ताकि एक बार फिर से इस क्षेत्र पर पाटीदारों का दबदबा रहे। दो बार राधेश्याम पाटीदार को हरदीपसिंह ने हराया था लेकिन इस बार पाटीदार फायदे में दिख रहे हैं। साथ ही भाजपा पार्टी के असंतुष्ट नेता भी उनके साथ जुड़ गए हैं जिन्हें मनाने अभी तक पार्टी नाकाम रही है। अब संघ ऐसे नेताओं को मनाने की कोशिश कर रहा है। वैसे तो भाजपा ने इस क्षेत्र में चुनाव की कमान जगदीश देवड़ा को सौपी है, जो इस समय सरकार में मंत्री हैं और 5 बार से विधायक भी रहे हैं। उनका इस क्षेत्र में प्रभाव भी अच्छा है। लेकिन फिर भी पार्टी में अंतर्कलह थमने का नाम नही ले रहा है। जबकि भाजपा ने इस क्षेत्र में जीतने के लिए सभी वरिष्ठ नेताओं को साथ ले लिया और अब संघ भी कोशिश कर रही है। लेकिन सर्वे के नतीजे फिर भी भाजपा के पक्ष में नजर नहीं आ रहे हैं। हरदीपसिंह को पार्टी के कई नेताओं से उस तरह की मदद नहीं मिल रही है, जिसकी उनको दरकार है।कार्यक्रमों में तो कई नेता उनके साथ दिखाई देते हैं पर अंदर से उनके घोर विरोधी बने हुए हैं। ऐसे में ये सीट बीजेपी की लिए एक चुनौती की तरह साबित हो रही है।