मुरैना। इस बार एमपी की मुरैना लोकसभा सीट पर मुकाबला रोचक है। इसकी वजह वर्तमान सांसद अनूप मिश्रा की जगह मैदान में केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को उतारा जाना है। उनका मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज नेता रामनिवास रावत से है। यह दूसरा मौका है जब 2009 के बाद दोनों एक बार फिर आमने -सामने हैं। वही जीतना भी दोनों के लिए चुनौती है, बीजेपी को गढ़ बचाना है तो कांग्रेस को अपनी पैठ जमाना है। वही तीसरे प्रत्याशी बसपा के करतार सिंह भडाना (गुर्जर) हैं, जो कही ना कही एट्रोसिटी एक्ट के विरोध के बाद कांग्रेस-बीजेपी के वोटर्स को प्रभावित कर सकते है। इस वजह से दिलचस्पी और भी बढ़ गई है और मुकाबला रोमांचक हो गया है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा से लगा मध्य प्रदेश का मुरैना संसदीय क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है। यहां अबतक 13 चुनाव हो चुके हैं। जिसमें से सात बार भाजपा, दो बार कांग्रेस, एक-एक बार जनसंघ, भारतीय लोकदल तो एक बार निर्दलीय चुनाव जीत चुके हैं। बीते 23 सालों से यहां भाजपा का ही कब्जा है। इस बार कांग्रेस ने जहां दिग्गज नेता सिंधिया समर्थक रामनिवास रावत पर दांव लगाया है, वही बीजेपी ने वर्तमान सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा का टिकट काट ग्वालियर सांसद और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को उम्मीदवार बनाया है। 2009 के परिसीमन के बाद मुरैना सीट से सामान्य वर्ग की जीत हुई तब से बीजेपी हर बार भारी प्रत्याशी को मैदान में उतार रही है। वही बसपा से हरियाणा के पूर्व विधायक करतार सिंह भड़ाना मैदान में है। भले ही यह गढ़ सालों से बीजेपी का रहा हो लेकिन बसपा का भी यह खासा प्रभाव है।
2009 के बाद फिर आमने सामने रावत-तोमर
तोमर बीजेपी के कद्दावर नेताओ में एक बड़ा नाम हैं। 2003 से 2008 तक मध्य प्रदेश की सरकार में ग्रामीण एव पंचायत विकास मंत्री व जनसंपर्क मंत्री के पद पर रहे। इसके बाद 2008 में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद पर आसीन रहे। 2009 में मुरैना- श्योपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े और पहली बार दिल्ली के संसद भवन पहुंचे। वर्ष 2014 में ग्वालियर लोकसभा चुनाव लड़े और जीते, ग्वालियर सांसद के साथ साथ मौजूदा मोदी सरकार में मंत्री हैं। वही रावत वर्तमान में मध्य प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। 2003 से पहले दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे वे पांच बार के विधायक हैं, लेकिन इस बार अपनी ही विधान सभा विजयपुर सीट से चुनाव हार चुके हैं। कांग्रेस ने फिर से इन्हीं पर भरोसा जताया है। ये ज्योतिरादित्य सिंधिया के नजदीकी कहे जाते हैं। वर्ष 2009 में भी कांग्रेस व बीजेपी के यही दोनों प्रत्याशी आमने सामने थे लेकिन परिणाम बीजेपी के पक्ष में रहा था। यह दूसरा मौका है जब रावत और तोमर आमने सामने मैदान में हैं।
इस सीट पर जातिवाद की राजनीति हावी
मुरैना-श्योपुर संसदीय सीट पर जातिवाद की राजनीति हावी है। यहां ठाकुर और ब्राम्हण की लड़ाई रहती है। जातिवाद की राजनीत के कारण ही इस सीट का रूख विपरीत दिशा में बहती है। मुरैना संसदीय सीट यूपी की सीमा से लगती है। जिस कारण यहां बहुजन समाज पार्टी का भी प्रभाव दिखाई देता है। एट्रोसिटी एक्ट को लेकर मध्यप्रदेश के इसी हिस्से में सबसे ज्यादा विरोध हुआ था। इस क्षेत्र में दलित, ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता जीत और हार तय करते हैं। यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। भाजपा की यहां जीत का सबसे बड़ा कारण रहा ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं को अपने पाले में लाने का। यहां से भाजपा के कई कद्दावर नेता ठाकुर और ब्राह्मण थे। जबकि कांग्रेस हमेशा यहां ब्राह्मण नेता खोजती रही।जिसके चलते हार का सामना करना पड़ा।
2004 में बदली स्थिति
1967 से 2004 तक यह सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित थी। 2009 में परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य वर्ग के लिए हो गई। मुरैना लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं। माधवपुर, विजयपुर, सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह यहां की विधानसभा सीटें हैं। यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर कांग्रेस का कब्जा है। जबकि भाजपा के खाते में सिर्फ एक सीट है।