Sarpanch in Neemuch Signs Bizarre Agreement : नीमच के मनासा से एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, जहां ग्राम पंचायत दांता की सरपंच कैलाशीबाई ने एक अनुबंध करते हुए अपने पद के सारे अधिकार सुरेश नाम के व्यक्ति को सौंप दिए हैं। इस अनुबंध पत्र में उन्होंने सुरेश को अपना प्रतिनिधि घोषित करते हुए कहा है कि जहां भी वे कहेंगे..वो हस्ताक्षर कर देंगीं। अब सवाल ये उठता है कि निर्वाचन प्रक्रिया से चुनकर आया जनप्रतिनिधि आखिर कैसे अपना पद किसी और को ट्रांसफर कर सकता है। क्या ये लोकतंत्र के साथ खुलेआम खिलवाड़ नहीं है ?
क्या कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से अपनी नौकरी किसी और को सौंप सकता है ? क्या किसी भी पद पर आसीन व्यक्ति अपना पद अन्य को हस्तांतरित कर सकता है ? इसका जवाब न में ही आएगा। ऐसा होना संभव ही नहीं है क्योंकि किसी भी व्यक्ति को उसकी योग्यता, क्षमता और हुनर के आधार पर चुना जाता है। जब किसी साधारण नौकरी तक में ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं तो आखिर लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित हुई एक सरपंच किस अधिकार से अपने सारे दायित्व किसी और को सौंप रही हैं।
क्या है मामला
ये मामला है नीमच जिले के मनासा की ग्राम पंचायत दांता का। यहां की सरपंच हैं कैलाशीबाई। अब कैलाशीबाई ने सुरेश नाम के व्यक्ति के साथ एक अजीब एग्रीमेंट किया है। इस अनुबंध पत्र में उन्होंने सरपंच पद के सारे दायित्व सुरेश को सौंप दिए हैं। पत्र का मज़मून पढ़कर किसी का भी दिमाग चकरा जाएगा। इसमें लिखा है कि ‘मैं सरपंच पद के कार्य पूर्ण करने में असमर्थ हूं इसलिए सुरेश को अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनती हूं। आज दिनांक से ग्राम पंचायत दांता के सरपंच के समस्त कार्य सुरेश पिता मांगीलाल करेंगे।’
अनुबंध पत्र में अन्य व्यक्ति को सौंपे सारे अधिकार
इस अनुबंध पत्र में आगे लिखा गया है कि कैलाशीबाई को सुरेश द्वारा किए गए किसी भी कार्य पर कोई आपत्ति नहीं होगी और किसी भी स्थिति के लिए वही ज़िम्मेदार होंगी। उन्होंने मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, वाटरशेड सहित सारे जिम्मेदारी भरे काम सिर्फ एक अनुबंध के माध्यम से किसी और व्यक्ति को दे दिए हैं। साथ ही ये भी लिखा है कि जब भी सरपंच के हस्ताक्षर की जरुरत होगी, वो कर देंगी। इस तरह उन्होंने खुलेतौर पर अपने आप को “फिगरहेड” घोषित कर दिया है। अनुबंध में कैलाशीबाई की तरफ से लिखा गया है कि वो राजी खुशी से अपने पूर्ण होशोहवास में और स्वस्थ हालत में ये समझौता कर रही हैं।
लोकतंत्र के साथ ये कैसा मजाक!
सरपंच पद न हुआ..हलवा हो गया। खुद से नहीं बन रहा तो प्लेट किसी और के सामने सरका दो। लोकतंत्र और संविधान के साथ खुलेआम मजाक और किसे कहते हैं। ये अनुबंध पत्र 24 जनवरी 2025 की तारीख का है और अपने साथ कई सवाल लेकर आया है। क्या निर्वाचन प्रक्रिया का ऐसे अपमान किया जा सकता है।अनुबंध करने वालों के अलावा क्या किसी और को भी ये खयाल नहीं आया कि ऐसा करना अनुचित ही नहीं, अवैधानिक भी है। और सवाल ये भी उठता है कि सरपंच पद पर बैठीं कैलाशीबाई ने क्या वास्तव में सब जानते-बूझते ये अनुबंध किया है। क्या वो इसे पूरा पढ़ पाई होंगी हस्ताक्षर करने से पहले और इसका अर्थ समझ पाई होंगी। अनुबंध पत्र की कठिन शब्दावली का क्या कैलाशीबाई ने पूरा अर्थ ग्रहण करते हुए अपनी रजामंदी से दस्तखत किए हैं। और अगर किए भी हैं तो इससे क्या फर्क पड़ने वाला है। सरपंच कोई ऐसा पद नहीं है जिसे मनमर्जी से किसी को भी हस्तांतरित कर दिया जाए। इस अनुबंध पत्र के सामने आने के बाद सैंकड़ों सवाल उठ रहे हैं। देखना होगा कि इसे लेकर शासन प्रशासन क्या कार्रवाई करता है।