पन्ना की बेटी गौरी अरजरिया का कारनामा, केदार कांठा पहाड़ पर -20 डिग्री में फहराया तिरंगा

Gaurav Sharma
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पन्ना,डेस्क रिपोर्ट। किसी ने क्या खूब कहा है कि कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों…! एक ऐसा ही कारनामा मध्य प्रदेश की हीरा नगरी (Diamond City of Madhya Pradesh) यानी कि पन्ना (Panna) जिले की बेटी ने कर दिखाया है, जिसने हाड़ कांपने वाली ठंड में 12 हजार 500 फीट पर तिरंगा फहराकर देश की छाती गर्व से चोड़ी कर दी है। दरअसल पन्ना की गौरी अरजरिया (Gauri Arjaria) ने गणतंत्र दिवस के मौके पर माइनस 20 डिग्री की ठंड में करीब 12,500 फीट की ऊंचाई पर केदार कांठा पहाड़ (Kedar kantha mountain) पर चढ़कर तिरंगा फहराया है, इसके साथ ही उसने राष्ट्रगान (National anthem) भी गाया।

गौरी अरजरिया ने प्रदेश किया नाम रोशन

गौरी अरजरिया पन्ना जिले के सिमरिया कस्बे की रहने वाली है, जो एक सामान्य आर्थिक वर्ग वाले परिवार से ताल्लुक रखती हैं। गौरी ने इंटरनेशनल एडवेंचर फाउंडेशन ग्रुप (International Adventure Foundation Group) के सदस्यों के साथ मिलकर इस मुकाम को पाया है। इंटरनेशनल एडवेंचर फाउंडेशन ग्रुप (International Adventure Foundation Group) के सदस्य उत्तरकाशी में स्थित केदार कांठा पहाड़ (Kedar kantha mountain) पर ट्रेक (Trek) करते हुए पहुंचे। इस ग्रुप में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़ राज्य के लोग शामिल थे। ग्रुप के लोगों ने सुबह 5:00 बजे 12 हजार 500 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदार पहाड़ पर चढ़कर पहला स्थान प्राप्त किया।

आर्थिक परेशानियों के बाद भी नहीं मानी हार

बता दें कि गौरी अरजरिया द्वारा सिमरिया गांव में ही पर्वतारोहण (Mountaineering) की प्रैक्टिस की गई, जिसके बाद गौरी अरजरिया ने साल 2019 में बेसिक माउंटेनियरिंग का कोर्स भी किया। बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स (Basic Mountaineering Course) करने के दौरान गौरी अरजरिया ने रेन ऑफ पीक की करीब 17 फीट ऊंचाई हासिल की। परिवार की आर्थिक परेशानी होने के बावजूद गौरी अरजरिया अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रही और उसने हार नहीं मानी।

पर्वतारोही गौरी का अगला लक्ष्य है माउंट एवरेस्ट

अपनी फतेह को लेकर पर्वतारोही गौरी अरजरिया का कहना है कि उनका सपना माउंट एवरेस्ट पर जीत हासिल करना है। गौरी अरजरिया बताती हैं कि इसको लेकर वह बहुत पहले से तैयारी कर रही है। पहले उन्होंने सिमरिया में रहकर तैयारी की, फिर उसके बाद उन्होंने बेसिक माउंट का कोर्स किया। बता दें कि गौरी की इस उपलब्धी पर विधायक प्रह्लाद लोधी ने भी उनकी तारीफ की है।

ये है केदार कांठा की मान्यता

बता दें कि केदार कांठा उत्तराखंड (Uttarakhand) के हिमालय की एक पर्वत चोटी है, जिसे केदार कंठ भी कहा जाता है। इसकी ऊंचाई 12,500 फीट है। यह उत्तरकाशी जिले के गोविंद वन्य जीव अभ्यारण के अंदर आता है। यह मूल केदारनाथ मंदिर था। बताया जाता है कि भगवान शंकर हिमालय में रहते थे। उत्तराखंड के पहाड़ों में कई प्राचीन शिव मंदिर है। जिनको महाभारत काल से जोड़ा जाता है। महाभारत युद्ध के बाद पांडव हिमालय पर भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए आए थे, लेकिन भगवान शिव नहीं मिले और पांडवों को गुमराह करने के लिए भैंस का रूप धारण कर लिया। जिसके बाद भीम 1 साल तक दो चट्टानों पर पैर फैला कर खड़े हो गए। भीम के पैर के नीचे से सभी लोग गुजर गए, बस एक भैंस ने नीचे से निकलने से मना कर दिया। जिसके बाद दोनों में युद्ध होने लगा।

केदार कांठा ही होने वाला था असली केदारनाथ मंदिर

युद्ध के दौरान भीम ने भैंस को टुकड़ों में बांट दिया, जिस स्थान पर यह टुकड़े गिरे वहां बाद में पांडवों ने पूजा करने के लिए वहां पर भगवान शिव के मंदिरों का निर्माण किया। मान्यता है कि जब यह मंदिर बन रहा था, तो केदार कांठा ही असली केदारनाथ मंदिर होने वाला था। मंदिर बनने के दौरान अचानक गाय की आवाज आ गई। जिसके बाद शांति भंग होने के डर से भगवान शिव चले गए और केदारनाथ में जाकर बस गए।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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