रतलाम, सुशील खरे। कोरोना काल में रेमडेसिवीर इंजेक्शन (Remdecivir Injection) की कालाबाजारी जोरों पर है। जहां रतलाम जिले में मेडिकल कॉलेज की नर्स और उसका भाई नकली रेमडेसिवीर इंजेक्शन बना रहे थे। कालाबाजारी करने वाले असली समझकर दो से चार गुना कमीशन लेकर बेच रहे थे। मामले में पुलिस ने जीवांश हॉस्पिटल (Jeevansh Hospital) के दो डॉक्टर और मंदसौर के युवक के साथ मेडिकल कॉलेज की एक नर्स, उसका भाई, जिला अस्पताल में पर्ची काटने वाला युवक और उसका साथी कुल 7 आरोपियों को गिरफ्तार किया है।
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बता दें कि नकली इंजेक्शन की लागत 25 रुपए थी, जो जीवांश हॉस्पिटल के कथित डॉक्टरों तक 20 हजार रुपए हुई और डॉक्टरों ने 30 हजार रुपए में बेच दिया। मरीजों को लगने वाला इंजेक्शन मार्केट में 25 रूपए में मिलने वाला सेफ्ट्रिक्सॉन इंजेक्शन (Ceftrikson Injection) था, जिसे डॉक्टर रेमडेसिवीर समझकर लगा रहे थे। सभी आरोपी मेडिकल व्यवसाय से जुड़े हैं या रिश्तेदार हैं। पुलिस जांच कर रही है कि नकली इंजेक्शन किन-किन लोगों को लगे हैं? नकली इंजेक्शन के कारण किसी की मौत तो नहीं हुई।
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पुलिस ने इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वाले जीवांश हॉस्पिटल के उत्सव पिता ईश्वर नायक (25) निवासी कोदरी पेटलावद झाबुआ, यशपाल पिता श्यामसिंह राठौर 24 निवाली पंचेड़ रतलाम और मेडिकल व्यवसायी फार्मासिस्ट प्रणव पिता यशवंत जोशी (21) निवासी करजू मंदसौर को रविवार को गिरफ्तार किया । मेडिकल कॉलेज की नर्स माया उर्फ रानी पिता भारतसिंह प्रजापत निवासी शिवनगर, उसके भाई पंकज (25), जिला अस्पताल में पर्ची बनाने वाले गोपाल पिता राजूलाल (24) निवासी सेजावता तथा उसके चचेरे भाई रोहित पिता लक्ष्मीनारायण (24) निवासी सेजावता को गिरफ्तार किया। उत्सव, यशपाल और प्रणव पुलिस रिमांड पर हैं। शेष को पुलिस मंगलवार को न्यायालय में पेश करेगी। उनसे जब्त नकली इंजेक्शन, औजार तथा अन्य सामान जांच के लिए फारेंसिक लैब सागर भेजे जाएंगे।
ऐसे बनाते थे नकली इंजेक्शन
एसपी गौरव तिवारी ने बताया मरीज को लगने वाला इंजेक्शन रेमडेसिवीर पावडर है, जिसमें डिस्टिल वाटर मिलाकर इंजेक्शन लगाया जाता है। मेडिकल कॉलेज में मरीज के लिए जारी इंजेक्शन के खोखे में मरीज का नाम पेन से लिखा रहता है। रीना प्रजापत मेडिकल कॉलेज में लगने वाले इंजेक्शन की खाली शीशी, बॉक्स भाई पंकज को उपलब्ध करवाती थी। मार्केट में 25 रुपए में मिलने वाला सेफ्ट्रिक्सॉन इंजेक्शन (मान्सेफ नमक) भरकर पंकज नकली इंजेक्शन बनाता था। इंजेक्शन की एल्युमीनियम सील खोलकर निकालता और क्विकफिक्स लगाकर रेमडेसिवीर की शीशी पैक कर देता था। बॉक्स में पेन से लिखा मरीज का नाम सैनिटाइजर से मिटाता और डॉक्टर टेप चिपकाकर मेडिकल लेंग्वेज में कुछ लिख देता था। यह इंजेक्शन 6 से 8 हजार रुपए में रोहित को देता। रोहित गोपाल को 12 से 14 हजार रुपए में बेच देता। गोपाल उसे प्रणव जोशी को देता और प्रणव इस इंजेक्शन को यशपाल को 20 हजार रुपए में बेच देता था। यशपाल और उत्सव इसे 30 से 35 हजार रुपए में मरीज के परिजन बेच देते थे।एसपी गौरव तिवारी ने बताया कि आरोपियों के पास से मिले इंजेक्शन जांच के लिए फारेंसिक लैब सागर भिजवाएंगे। इंजेक्शन की एल्युमीनियम की सील, आरोपियों के पास से मिले औजार जांच के लिए फारेंसिक लैब भेजेंगे।
इस तरह पहचाने असली-नकली में फर्क
सूत्रों के अनुसार असली और नकली इंजेक्शन में अंतर है। नकली इंजेक्शन का रबर का ढक्कन स्लेटी रंग का है असली इंजेक्शन का ढक्कन लाल रंग का है। दोनों में पावडर की मात्रा अलग-अलग है। डिस्टिल वाटर मिलाने पर इंजेक्शन के रंग में भी फर्क है। मेडिकल स्टाफ ध्यान देता तो यह हेराफेरी पहले पकड़ में आ जाती।
ऐसे बना गिरोह
रोहित मालवीय के चाचा कोरोना संक्रमित होने के कारण मेडिकल कॉलेज में भर्ती थे। 10 अप्रैल को इंजेक्शन की जरूरत पड़ने पर रोहित ने पूर्व परिचित नर्स रीना से संपर्क किया। माया रीना ने तीन-तीन हजार रुपए प्रति इंजेक्शन कुल 6 हजार रुपए लेकर दो इंजेक्शन उपलब्ध करवाए। 12 अप्रैल को जिला चिकित्सालय में काम करने वाले गोपाल को जरूरत हुई। उसके परिचित मेडिकल का काम करने वाले प्रणव जोशी से संपर्क किया परंतु इंजेक्शन नहीं मिले। गोपाल ने रोहित मालवीय से संपर्क किया तो रोहित ने रीना से बात की। रीना ने भाई पंकज से 6 इंजेक्शन भिजवा दिए। प्रणव ने गोपाल से संपर्क किया गोपाल ने पंकज से इंजेक्शन लेकर प्रणव को दिए और प्रणव ने जीवांश के दोनों डाक्टरों को दिए। 21 अप्रैल से 24 अप्रैल तक प्रणव ने यशपाल को 9 इंजेक्शन दिए जो उत्सव और यशपाल ने बेचे।