Navratri Special Rewa Rani Talab Mandir : इन दिनों पूरे देशभर में नवरात्रि का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। हर गली, हर मोहल्ले में माता रानी की प्रतिमाएं स्थापित की गई है। भव्य पंडाल बनाए गए हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक माता की पूजा करने पहुंच रहे हैं। सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिलती है। बता दें कि सालभर में कुल चार नवरात्रि मनाई जाती है। जिनमें से यह शारदीय नवरात्रि चल रही है, जो कि साल के सिंतबर या अक्टूबर महीना में मनाई जाती है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है।
ऐसी मान्यता है कि इस दौरान मां दुर्गा ने धरतीवासियों को महिषासुर राक्षस से बचाने के लिए शेर पर सवार होकर आई थी और उसका वध किया था। जिसके बाद से ही दुर्गा पूजा का त्योहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसे हर राज्य में अलग-अलग परंपराओं के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की अलग ही धूम देखने को मिलती है, तो वहीं पश्चिमी राज्यों में गरबा खेल कर इस पर्व को मनाया जाता है।
रीवा में नवरात्रि की धूम
मध्य प्रदेश के रीवा में भी नवरात्रि की अलग ही धूम देखने को मिल रही है। दरअसल, यहां स्थित रानी तालाब मंदिर गौरवशाली इतिहास के लिए जाना जाता है। यहां नवरात्रि के खास मौके पर भक्तों की काफी ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है। यहां मां कालिका देवी की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसे देखने के लिए भक्त दूर-दराज से यहां पहुंचते हैं। अष्टमी और नवमी के दिन यहां पर माता का स्वर्ण के आभूषणों से श्रृंगार किया जाता है, जो कि काफी अनोखा होता है।
उमड़ी भक्तों की भीड़
बता दें कि यहां हर साल शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के दौरान भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जहां हजारों की संख्या में भक्त माता रानी के दर्शन करने के लिए आते हैं। मेले में तरह-तरह के झूले, पकवान, खिलौने, आदि मिलते हैं। 9 दिन यहां काफी ज्यादा चहल-पहल देखने को मिलती है।
450 साल पुराना इतिहास
मंदिर के मुख्य पुजारी और प्रधान पुजारी देवी प्रसाद का कहना है कि यह मंदिर लगभग 450 साल पुराना है। मान्यताओं के अनुसार, एक व्यापारी यहां से माता की मूर्ति लेकर गुजर रहा था, तभी वह थक गया। इस कारण उसने मूर्ति को एक पेड़ पर टिका दिया और खुद विश्राम करने लग गया। जब वह विश्राम करके उठा और मूर्ति को उठाकर ले जाना चाहा, तो मूर्ति नहीं उठी, बल्कि वह वहीं पर स्थापित हो गई, क्योंकि माता की उस मूर्ति को एक बार उठाकर जहां उसे रखा जाता वो वहीं स्थापित हो जाता। ऐसे में वह प्रतिमा वहीं पर स्थापित हो गई, तब से ही इस जगह पर मां कालिका की पूजा-अर्चना की जाती है।