Navratri 2024 : अभी पूरा देश माता रानी की भक्ति में डूबा हुआ है। देश के हर कोने में नवरात्रि का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। गली-गली में माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई है। भव्य पंडाल के साथ बहुत सी जगह पर मेले का आयोजन भी किया गया है। यहां झूले, खाने-पीने की चीजें, खिलौने आदि लोगों का मनोरंजन का साधन बन रहे हैं। हर जगह की अपनी अलग-अलग होती है, जिसके अनुसार त्योहार मनाए जाते हैं। बता दें कि साल के चार नवरात्रि में यह आखिरी नवरात्रि का त्योहार मनाया जा रहा है। इस दौरान साधक 9 दिन व्रत का रखते हैं, जिसमें वह फलों का आहार ग्रहण करते हैं। अपने परिवार के सुख और शांति की कामना करते हैं।
मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि का त्योहार अधर्म पर धर्म, असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इतिहासकारों का कहना है कि जब लोग महिषा्सुर से परेशान हो गए थे, तब धरती को तबाह होने से बचने के लिए भगवान के शरण में गए, जहां से उन्हें माता दुर्गा के पास भेजा गया। जिनके पास गुहार लगाने के बाद उन्होंने शेर पर सवार होकर दानव महिषासुर का वध किया। तब से त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा, रामायण ग्रंथ के अनुसार भगवान राम के जीवन से भी जुड़ा है। दरअसल, इस दिन संसार के पालनहार ने असुर रावण का वध किया था।
उमड़ी भीड़
देशभर में इसकी धूम अलग-अलग प्रकार से देखने को मिल रही है। इसी कड़ी में मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में भी 18 भुजाओं वाली मां कंकाली के दर्शन करने पहुंच रहे हैं। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है की माता के दर्शन मात्र से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यहां की अद्भुत प्रतिमा कल्चुरी काल की है, जो कि काफी अनोखी है। यह जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर अंतरा गांव में स्थित है, जहां सच्चे मन से अपनी मुराद लेकर जाने वाले कभी खाली हाथ नहीं लौटते। माता की महिमा इतनी अपरंपार है कि यहां दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर में पट सुबह से ही खुल जाते हैं और तब से ही भीड़ जमा होने लगती है।
दूर-दूर से आते हैं लोग
इस मंदिर में माता रानी के विकराल स्वरूप का दर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य मिलता है। नवरात्रि में यहां का नजारा ही देखते बनता है। बैठकी से लेकर नौवीं तक भक्तों का तांता मां की आराधना और दर्शन लाभ के लिए उमड़ता है। सुबह से लेकर देर रात तक यहां चहल-पहल बनी ही रहती है। पूरा मंदिर परिसर माता रानी के जयकारों से गूंजता रहता है। मां के दर्शन के लिए यहां दूर-दूर से लोग आते हैं। दिन रात सेवा करने वाले भक्त और मंदिर के पुजारी यहां के अद्भुत चमत्कारों का बखान करते नहीं थकते हैं।
सांप करते हैं माता की पहरेदारी
ऐसी मान्यता है कि देर रात माता रानी के पट बंद होने के बाद मंदिर के अंदर कोई प्रवेश नहीं कर सकता है। यहां पहरेदारी के लिए सांप अपना डेरा जमा लेते हैं। यह सर्प सुबह तक गर्भगृह के आस-पास मंडराते रहते हैं। यहां तक कि कई बार ऐसी भी स्थिति बनी है कि दोपहर के समय भी पट बंद होने पर इन्हें गर्भग्रह और मंदिर के द्वार पर लिपटे देखा गया है। यह घटना कभी कभार नहीं घटती। यहां के स्थानीय लोगों का ऐसा भी मानना है कि नवरात्रि के समय में माता रानी के दर्शन के लिए पंचमी के दिन वनराज का भी आगमन होता है। हालांकि, आज तक किसी ने उन्हें स्पष्ट रूप से मंदिर परिसर के अंदर देखा नहीं है। बस सुबह जब पुजारी पूजा के लिए पहुंचते हैं, तो कई बार वनराज के पद चिह्न देखे गए हैं।
कल्चुरी काल की है प्रतिमा
कंकाली माता मंदिर के गर्भ ग्रह में 18 भुजी चामुण्डा के अलावा शारदा और अष्टभुजी सिंहवाहनी दुर्गा प्रतिमाएं स्थापित है। अठारह भुजी चामुण्डा स्थानक रूप में हैं सिर पर जटा मुकुट, आंखे फटी हुई, भयोत्पादक खुला मुंह, नसयुक्त तनी हुई ग्रीवा, गले में मुंडमाला, लटके हुए वक्ष, चिपका उदर पीठ, स्पष्ट पसलियां तथा शरीर अस्थियों का ढ़ांचा अर्थाक कंकाल सदृश्य होने से इनका नाम कंकाली पड़ा।
तंत्र साधना का बड़ा केंद्र
इतिहासकार का मानना है कि 9वीं और 10वीं शताब्दी में कलचुरी राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण कराया था, जो कि पहले 64 योगिनी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध था।
राहुल सिंह राणा, शहडोल