कलेक्ट्रेट में लगा मेला, ऋण माफी की खबर सुनते ही उमड़े ग्रामीण,सोशल डिस्टेंसिंग की उड़ी धज्जियां

Gaurav Sharma
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शहडोल, अखिलेश मिश्रा। कोरोना काल में विषम परिस्थितियों से जूझ रहे ग्रामीण जिला प्रशासन द्वारा ऋण माफी की खबर सुनते ही परिवार सहित कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंच गए। देखते ही देखते कलेक्ट्रेट परिषर में ग्रामीणों का हुजूम इकट्ठा हो गया । कुछ लोगों ने भ्रम फैला दिया था कि माइक्रो प्लान के द्वारा जो छोटे-छोटे ऋण वितरित किए गए हैं, सरकार उन्हें माफ करने जा रही है । लेकिन कुछ देर बाद जब उन्हें मालूम हुआ कि किसी ने इनके साथ भद्दा मजाक किया है । तो वे भड़क गए , इतना ही नही ऋण माफी के नाम पर कुछ लोगों ने ग्रामीणों से 200 रुपए का प्रोफार्मा तक बेच डाले । यह सब कहीं और नही बल्कि कलेक्ट्रेट परिषर में चलता रहा । जिसके बाद मौके पर पहुंचे जिला के प्रशानिक अधिकारियों ने ग्रामीणों को समझाइश दी और भ्रम फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही, तब जाकर ग्रामीण शान्त हुए और निराश होकर अपने घर को लौट गए । इस दौरान सोसाल डिस्टेंसिंग की जमकर मखौल उड़ाया गया ।

 

वहीं स्व सहायता समूह से जुड़े लोगों का भारी हुजूम इकट्ठा हो गया। इस दौरान कलेक्ट्रेट परिषर में कुछ लोग एक सिंपल से कागज पर प्रोफार्मा बनाकर 2 से ढाई सौ रुपए में बेच रहे थे जोकि कलेक्ट्रेट कंपाउंड के अंदर हो रहा था। कलेक्ट्रेट कंपाउंड में धड़ल्ले से हो री चारसौ बीसी, फार्म की कालाबाजारी और कोरोनावायरस जैसे संक्रमण काल में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई जा रही थी । जहां पुलिस का मुख्य कार्यालय कलेक्ट्रेट है हर पल अधिकारियों का आना-जाना लगा रहता है फिर भी इस फरेबी पन पर किसी की नजर नहीं पड़ रही है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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