उज्जैन, डेस्क रिपोर्ट। दिवाली (Diwali) का त्योहार नजदीक है ऐसे में देश भर के लक्ष्मी मंदिरों में भक्तों का जनसैलाब उमड़ता दिखाई देने वाला है। सभी जानते हैं कि मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू है लेकिन मध्यप्रदेश के उज्जैन (Ujjain) में ऐसा मंदिर स्थापित है जहां पर श्री लक्ष्मी हाथी पर सवार हैं। गज लक्ष्मी मंदिर (Gajalakshmi temple) के नाम से विख्यात यह मंदिर विश्व का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां माता लक्ष्मी गज पर विराजित है।
उज्जैन के सर्राफा में स्थिति मंदिर लगभग 2000 साल पुराना है। इस मंदिर में माता लक्ष्मी हाथी पर सवार दिखाई देती हैं। पौराणिक कथाओं के मुताबिक अपने अज्ञातवास के दौरान पांडवों की माता कुंती ने यहां देवी लक्ष्मी की आराधना की थी। जिससे प्रसन्न होकर देवी लक्ष्मी ने पांडवों को उनका राज-पाट वापस दिलवा दिया था।
दीपावली के दिन इस मंदिर में विशेष अनुष्ठान कर माता लक्ष्मी का दूध से अभिषेक किया जाता है। पूजन अर्चन के बाद मां को छप्पन भोग भी लगाया जाता है और अभिषेक में उपयोग किए गए दूध को भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। मान्यताओं के मुताबिक यहां पर महाभारत के काल से माता गज लक्ष्मी की पूजन अर्चन हो रही है। इस मंदिर में बहीखाता लिखे जाने की परंपरा भी काफी पुरानी है। आज भी कई व्यापारी यहां पर अपना बहीखाता लेकर पहुंचते हैं और हर साल नए बही खाते की शुरुआत करते हैं।
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इस गजलक्ष्मी मंदिर में भगवान विष्णु की दशावतार प्रतिमा भी विराजित है जो 2000 साल पुरानी है। काले पत्थर पर उकेरी गई यह प्रतिमा देश में कहीं भी देखने को नहीं मिलती है। इस प्रतिमा पर भगवान विष्णु के दशावतार बने हुए हैं। लक्ष्मी के साथ यहां श्री विष्णु को भी पूजा जाता है।
दीपावली के दिन यहां भक्तों का हुजूम उमड़ता है। लोगों का मानना है कि गजलक्ष्मी के दर्शन करने और उनका पूजन अर्चन करने से कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं आती है। यहां पर दर्शन करने आने वाले भक्तों को प्रसाद में सिक्के बांटे जाते हैं और सुहागिन महिलाओं को कुमकुम और चूड़ियां भेंट की जाती हैं। दीपावली के अलावा यहां हर शुक्रवार को भी दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ देखी जाती है।
इस मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी बहुत प्रसिद्ध है। कथा के मुताबिक पांचो पांडव अपनी माता के साथ अज्ञातवास पर थे। इस दौरान माता कुंती को अष्ट लक्ष्मी की पूजन करनी थी। अपनी मां को परेशान देखकर पांडवों ने इंद्रदेव से प्रार्थना की और इससे प्रसन्न होकर इंद्रदेव ने अपने ऐरावत हाथी को धरती पर भेजा। इंद्र के ऐरावत पर मां लक्ष्मी विराजमान हुई और माता कुंती ने अपनी अष्ट लक्ष्मी की पूजन को संपन्न किया। इंद्रदेव ने अपना ऐरावत तो धरती पर भेज दिया लेकिन भीषण बारिश की जिसकी वजह से पांडवों का बनाया हुआ मिट्टी का हाथी बह गया जिसकी वजह से वह पूजा नहीं कर पाए। लेकिन माता कुंती की पूजन से प्रसन्न होकर मां गज लक्ष्मी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और पांडवों को अपना खोया हुआ राज्य वापस मिल गया।