भोपाल/उज्जैन।
मध्य प्रदेश के उज्जैन में इस बार प्रमुख मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी में है लेकिन इस बार दोनों ही दलों को इस भितरघात का डर सता रहा है। दोनों ही दलों ने इस बार हारे हुए प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। बीजेपी यहां से अनिल फिरोजिया को टिकट दिया है। वह पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में हार चुके हैं। उनका सामने कांग्रेस के बाबूलाल मालवीय हैं। वह भी तराना से एक बार विधायक रहे हैं, लेकिन 2003 और 2008 का चुनाव हार गए थे। कांग्रेस में गुटबाज़ी हावी है तो वहीं बीजेपी को भितरघात का डर सता रहा है।
दरअसल, इस बार विधानसभा चुनाव में आठ में से पांच विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को फतह मिली है। इसके साथ ही कांग्रेस में गुट भी बढ़ गए हैं और ये गुटबाज़ी अब लोकसभा चुनाव में खुलकर सामने आ रही है। कांग्रेस को जिन सीटों पर हार मिली थी उनपर अपने ही हार की वजह बने थे। कांग्रेस से बागी हो कर चुनाव लड़े और नतीजों पर इसका सीधा असर पड़ा। विधानसभा चुनाव से सीख लेते हुए कांग्रेस ने बागी नेताओं को मनाने की कोशिश की है। खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने नाराज नेताओं से बात कर उन्हें पार्टी के लिए काम करने को कहा है। हालांकि इन नेताओं की अभी अधिकृत वापसी नहीं हुई है।
कमलनाथ के गुट में भी दो फाड़
विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने रूठो को मनाने और उनसे काम लेने की बड़ी चुनौती है। विधानसभा चुनाव होने के बाद से कांग्रेस में कई गुट हो गए हैं। जो एक दूसरी की सियासत को प्रभावित होने का काम कर रहे हैं। उज्जैन में कमलनाथ, सिंधिया और दिग्विजय सिंह के समर्थक की लिस्ट अलग है। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी मालवीय को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी है, बीते दिनों एक कथित पत्र भी वायरल हुआ था। इसमें कांग्रेस के एक खेमे ने नाराजगी व्यक्त की थी।
गेहलोत-सांसद में मनमुटाव से परेशान
इधर भाजपा के भीतर चल रहे घमासान से पार्टी के आला नेता परेशान हैं। उज्जैन संसदीय क्षेत्र से पहली बार पार्टी ने अपने जीते हुए सांसद का टिकट काटा है। सांसद चिंतामणि मालवीय ने बीता चुनाव तीन लाख से अधिक वोटों से जीता था और इस बार भी दावेदारी थी। मगर उन्हें उज्जैन के अलावा देवास से भी टिकट नहीं दिया गया। सूत्रों के अनुसार पार्टी के इस निर्णय में केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत की भूमिका रही। गेहलोत अपने खेमे के किसी नेता को टिकट दिलाना चाहते थे। इसके लिए दो नाम भी सुझाए गए। मगर ऐसा नहीं हो सका। आखिरकार निर्णय पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह पर छोड़ा गया और अनिल फिरोजिया का नाम तय हुआ।