मज़ेदार खबर : आर्यन के साथ बिकी कंगना ,34000 लगी कीमत।

Gaurav Sharma
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उज्जैन डेस्क रिपोर्ट। देश के सुप्रसिद्ध गधों के मेले मे इस बार कंगना और आर्यन की जोड़ी 34000 रू में बिकी है। उज्जैन में लगने वाले इस मेले में 100 से ज्यादा गधे और घोड़े बिकने के लिए आए थे जिनमें सबसे ज्यादा कीमत भूरी घोड़ी की दो लाख रू लगी।

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मध्य प्रदेश का इकलौता गधों का मेला उज्जैन में लगता है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले इस मेले में आसपास के जिलों के गधे व घोड़े बिकने आते हैं। इस बार लगे इस मेले में आर्यन और कंगना नाम के गधो की जोड़ी 34000 रू में बेची गई। कोरोना काल में फेमस हुई वैक्सीन के चलते एक गधे का नाम वैक्सीन के नाम पर भी रखा गया था जो 14000 रू में बिका। सबसे ज्यादा कीमत भूरी नाम की घोङी की दो लाख रू और बादल नाम के घोड़े की डेढ़ लाख रुपए लगाई गई।

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दरअसल घोड़ों की तुलना में घोङियों की कीमत ज्यादा इसलिए होती है क्योंकि वह शादी में दूल्हे को बैठाने के काम आती है। हालांकि इस मेले के संरक्षक हरिओम प्रजापति का कहना है कि अब गधों का वह क्रेज नहीं रहा। पहले इनका इस्तेमाल व्यापक तौर पर परिवहन में किया जाता था लेकिन अब केवल बिल्डिंग मटेरियल की ढुलाई में ही इनका प्रयोग होता है और ईट भट्टों में भी। गधों की कीमत का अंदाजा उनके दांत देखकर लगाया जाता है। इनके 3 दांत होते हैं इनका साइज देखकर ही पैसा मिलता है। गधो लगभग 5 साल की उम्र तक कार्यशील रहते है। उसके बाद वह बूढे होने लगते हैं।

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हालांकि कोरोना के चलते पिछले दो सालों से इस मेले पर भी व्यापक असर पड़ा है और इस बार भी कोरोना के बारे में कोई स्पष्ट निर्देश ना होने के चलते मेले पर असर दिखाई दिया। पहले इस मेले में राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों से भी गधों के व्यापारी आते थे लेकिन इस बार मालवा अंचल के आसपास के जिलों के ही व्यापारी अपने गधे और घोड़े लेकर इस मेले में आए।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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