कवि कुमार विश्वास ने क्यों कहा ये लोकतंत्र का शोकपर्व हैं ? जानिए इसकी वजह

Atul Saxena
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट।  केंद्र की मोदी सरकार के “ऑक्सीजन से एक भी मौत नहीं” बयान पर कवि कुमार विश्वास ने बहुत ही भावुक ट्वीट किये है। उन्होंने कई ट्वीट किये जिसके शब्दों में कोरोना से मरने वाले लोगों के परिजनों की तकलीफ साफ समझी जा सकती है। कुमार विश्वास ने लिखा – नागरिकों की बेचैनी का मर जाना लोकतंत्र का शोकपर्व है।

दर असल मोदी सरकार के बयान ने देश में तूफ़ान ला दिया है, कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह ऑक्सीजन की  त्राहि त्राहि हुई, ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए लोग दिन रात लाइन में लगे रहे।  संतरी से लेकर मंत्री तक सड़क पर थे, कोई भीड़ को हटा रहा था तो कोई श्मशान में चिता के अंतिम संस्कार की व्यवस्था कर रहा था। सरकारों के आदेश पर रातोरात ऑक्सीजन प्लांट लग गए, एक राज्य से दूसरे राज्यों को टैंकर भेजे गए, इस बीच लाखों लोग भगवान को प्यारे हो गए लेकन सरकार ने दावा कर दिया कि एक भी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई।

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मोदी सरकार के इस बयान के बाद देश के लोगों में गुस्सा है राजनेता से लेकर देश का हर संवेदनशील नागरिक प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है। ऐसे में कवि कुमार विश्वास भी सामने आये उन्होंने ट्वीट कर अपनी पीड़ा व्यक्त की और शब्दों में गुस्सा जाहिर किया।

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कुमार विश्वास ने ट्वीट किया – मुझे सरकारों-नेताओं की बेशर्मी का दुख नहीं है।उस संवेदनहीनता का तो दीर्घकालिक निजी अनुभव है।मुझे कष्ट उन हज़ारों फ़ोन करने वालों की ख़ामोशी का है जो उन कठिन दिनों में सिलेंडर/कन्सन्ट्रेटर की एक मिनट की देरी पर दस कॉल करते थे।नागरिकों की बेचैनी का मर जाना लोकतंत्र का शोकपर्व है।

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कुमार विश्वास ने एक यूजर  ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा -हाँ खड़े तो थे ही, खड़े भी रहेंगे ही।न मैदान छोड़ेंगे न पीठ दिखाएँगे।इस निर्लज्ज समय में ‘मनुष्य’ बने रहने के लिए इतने ज़ख़्म तो खाने ही होंगे।

अपने ही ट्वीट को रीट्वीट कर कुमार विश्वास ने चौपाई लिखी -“अब अनि कोउ माखै भट मानी, वीर विहीन मही मैं जानी”


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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