MP उपचुनाव : मतदाताओं के मौन ने बढ़ाई पार्टियों की चिंता

Pooja Khodani
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National Voters Day

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में विधानसभा चुनाव (Assembly By-election) का रंग गहराने लगा है। राजनीतिक दलों (Political Parties) की सभाएं और नेताओं के दौरे जारी हैं, मगर मतदाता मौन हैं। मतदाताओं (Voters) के इसी रुख ने राजनीतिक दलों (Political parties) की चिंता बढ़ा दी है।

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राज्य में पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Former Central Minister Jyotiraditya Scindia) के नेतृत्व में तत्कालीन 22 विधायकों (MLA) के कांग्रेस (Congress) छोड़कर भाजपा (BJP) में शामिल होने के बाद सत्ता में बदलाव हुआ और अब उप-चुनाव हो रहा है। कुल मिलाकर 28 विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव हो रहे हैं, मतदान 3 नवंबर को मतदान होने वाला है। चुनाव की तारीख करीब आने के साथ राजनीतिक दलों की गतिविधियां बढ़ गई हैं। भाजपा जहां मंडल सम्मेलन का आयोजन कर रही है और कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने में लगी है तो वहीं कांग्रेस की जनसभाएं भी जारी हैं।

उपचुनाव में मतदाता नहीं कर रहे अपनी राय जाहिर
राजनीतिक दलों की जहां गतिविधियां बढ़ रही हैं, कार्यकर्ताओं की सक्रियता जोरों पर है, वहीं आम मतदाता इस चुनाव पर पूरी तरह शांत बैठा है और किसी तरह की राय जाहिर नहीं कर रहा। इसके चलते दोनों ही प्रमुख दल पसोपेश में हैं। यह बात अलग है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ (Congress President Kamal Nath) कई बार यह कह चुके हैं कि राज्य की जनता फिर कांग्रेस को सत्ता में वापस लाना चाहती है, इसलिए सभी 28 सीटों पर कांग्रेस की जीत होगी।

उपचुनाव में कांग्रेस को जनता को देना होगा जवाब : भूपेंद्र सिंह
वहीं भाजपा की चुनाव प्रबंध समिति के संयोजक और शिवराज सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह (Convener Of Election Management Committee Of BJP And Minister In Shivraj Government Bhupendra Singh) का कहना है कि कमल नाथ सरकार ने प्रदेश के किसान (Farmers) और नौजवान (Youth) के साथ धोखा किया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कांग्रेस इसीलिए छोड़ी थी, क्योंकि चुनाव से पहले किए गए वादे पूरे नहीं किए गए। आगामी उपचुनाव में भी कांग्रेस को अपने वादे पूरे न करने का जवाब जनता देने वाली है।

कोरोना ने प्रभावित की ज़िंदगी
वहीं, मतदाताओं के ज्यादा उत्साहित न होने की वजह कोरोना भी है, क्योंकि इसने आम आदमी की जिंदगी पर बड़ा असर डाला है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आमतौर पर चुनावों में मतदाता का उत्साह नजर नहीं आता, यह उत्साह तो तब दिखता है जब या तो वर्तमान सत्ता के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश हो या उसके समर्थन में माहौल हो। वर्तमान में प्रदेश की सरकार को लेकर ऐसा कुछ भी नहीं है और आम लोग खुद परेशान हैं। कोरोना महामारी ने उनकी जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है। ऐसे में मतदाता कैसे उत्साहित हो सकता है, वह तो मौन ही रहेगा और उसका उत्साह तो ईवीएम खुलने पर ही नजर आएगा।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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