शहडोल।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में अब केवल पांच दिनों का समय बचा है, 28 नवबंर को मतदान होना है। एक तरफ राजनैतिक दलों की चुनावी तैयारी जोरों पर चल रही है, नेताओं द्वारा प्रचार प्रसार किया जा रहा है वही दूसरी तरफ मध्यप्रदेश की एक ऐसी विधानसभा है जहां लोगों को पता ही नही है कि मध्यप्रदेश में कुछ ही दिनों में चुनाव होना है।हम बात कर रहे है कि ब्यौहारी विधानसभा के दाल गांव की जहां अब तक ना तो कोई नेता-मंत्री प्रचार के लिए पहुंचा और ना ही यहां विकास की गंगा बही।ऐसे में उनके लिए मिशन 2018 किसी बड़े इम्तिहान से कम नहीं होगा।
दरअसल, शहडोल जिले में ब्यौहारी विधानसभा का यह गांव दुर्गम पहाड़ों के बीच स्थित है। इस गांव में पहुंचने के लिए उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। इसके लिए करीब आठ किलोमीटर अंदर पैदल चलना पड़ता है।यहां ना तो सड़क है और ना ही पीने के स्वच्छ पानी। यहां पहुंचने के लिए अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते है।इसी कारण यहां न तो कोई दरियादिल नेता पहुंचा और न ही कोई दिलेर अफसर। हैरानी की बात तो ये है कि लगभग तीस परिवार वाले 100 मतदाताओं के इस गांव में बूथ भी नहीं है। 2013-14 में 8 किमी नीचे उतरकर धांधूकुई वोट डालने गए थे। कहते हैं कि जब कभी चुनाव होता है तो सरपंच या सचिव लेने आ जाते हैं। लोग जाकर बटन दबा देते हैं। इन दिनों किसका चुनाव हो रहा है लोकसभा या विधानसभा, किसी को पता नहीं। यहां के लोग न तो सरकार को जानते हैं और न विधायक को, क्योंकि कई दशक बीतने के बाद भी न तो कोई नेता यहां आए हैं, और न ही अधिकारियों ने सुध ली है।
ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले आदिवासी आज भी बुनियादी सुविधाओं से दूर हैं। इस वनांचल इलाके में सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पाती है। ब्यौहारी में पेय जल संकट बड़ा मुद्दा है, नदी के सूख जाने से लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। बाण सागर परियोजना होने के बावजूद लोगों को पानी के लिए तरसना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि सुना था पिछली बार भाजपा हारी थी, कांग्रेस जीती थी। स्कूल है, लेकिन बंद रहता है। पहाड़ में चढ़ने-उतरने में बहुत दिक्कतें होती हैं, लेकिन क्या करें कोई सुनता ही नहीं है। हमारे यहां कोई आता नहीं, मतदान के समय कोई नेता आएगा और ले जाएगा तो हम बटन दबा आएंगे। बीजेपी में यहां से शरद कोल तो है कांग्रेस से रामपाल सिंह मैदान में है।