हाई कोर्ट ने कर्मचारियों को दी बड़ी राहत, मिलेगा 18 हजार न्यूनतम वेतन, राज्य सरकार को दिए ये निर्देश

Pooja Khodani
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UP Forest Employees Minimum Wage : उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वनकर्मियों को बड़ी राहत दी है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को वन विभाग में कार्यरत सभी दैनिक व मस्टर रोल कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत 18 हजार रुपये न्यूनतम वेतन का भुगतान करने का आदेश दिया है।यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने गोरखपुर के विजय कुमार श्रीवास्तव व अन्य की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।

क्या है पूरा मामला

दरअसल, यूपी की इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुत्तीलाल केस में बड़ा फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुत्तीलाल केस में दिए निर्देश के विपरीत वित्त और वन विभाग के अपर मुख्य सचिवों के रवैये को अदालत की आपराधिक अवमानना करार दिया है और दोनों विभागों को वन विभाग में कार्यरत सभी दैनिक व मस्टर रोल कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत 18000 रुपये न्यूनतम वेतन का भुगतान करने का आदेश दिया है।

राज्य सरकार ने दिया था हलफनामा

याची के अधिवक्ता पंकज श्रीवास्तव ने कहा कि प्रमुख मुख्य सचिव वन, पर्यावरण व पारिस्थितिकी परिवर्तन विभाग की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने न्यूनतम वेतन देने की सिफारिश की और कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर सूचित भी किया था कि छठवें वेतन आयोग के तहत 7000 रुपया वेतन पा रहे सभी दैनिक कर्मियों को नियमित होने तक सातवें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये का भुगतान करने पर नीतिगत सहमति है। अब राज्य सरकार इसे नियमों के विपरीत बताकर मुकर रही है। फाइनेंशियल हैंड बुक पार्ट 6 को असंवैधानिक घोषित नहीं किया गया है। इसलिए दैनिक कर्मियों को न्यूनतम वेतन पाने का हक नहीं है।

सातवें वेतन आयोग के तहत मिलेगा 18 हजार न्यूनतम वेतन

हाई कोर्ट ने कहा कि छठें वेतन आयोग का लाभ देकर सातवें वेतन आयोग का लाभ देने से इनकार करने का अधिकार सरकार को नहीं है। सरकार ने कहा था जिन्हें 7000 रुपये मिल रहे हैं उन सभी को 18 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन दिया जाएगा और कोर्ट ने फैसला दे दिया। वही अपर मुख्य सचिव वित्त एवं वन विभाग को आदेश का पालन करने अथवा यह बताने का निर्देश दिया है कि क्यों न अवमानना आरोप निर्मित किया जाए। प्रकरण की अगली सुनवाई चार दिसंबर को होगी।

 

 


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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