Draupadi Murmu : कॉलेज में हुआ प्यार, मुश्किल से माने पिता, दहेज में मिले गाय-बैल

Atul Saxena
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नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। आज देश को नया राष्ट्रपति (Presidential election) मिल जाएगा। सर्वोच्च पद के लिए मतदान हो गया है मतगणना जारी है। परिणाम (Presidential election results) शाम तक आने की उम्मीद है। परिणाम के बाद तय हो जायेगा कि देश को आदिवासी महिला आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) मिलेंगी या भाजपा शासन काल में केंद्रीय मंत्री रहे लेकिन अब विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) इस कुर्सी पर बैठेंगे।

हालांकि यदि आंकड़ों को देखें तो द्रौपदी मुर्मू की जीत लगभग तय मानी जा रही है, कहा जा रहा है कि वे मजबूत हैं , परिणामों की घोषणा एक औपचारिता है, एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को 27 दलों का समर्थन प्राप्त है जबकि यशवंत सिन्हा को 14 दलों का। विशेषज्ञों की मानें तो मुर्मू डेढ़ लाख से अधिक वोटों से जीत सकती हैं।

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बहुत ही गरीब आदिवासी परिवार में जन्मी द्रौपदी मुर्मू ने पढ़ाई से लेकर पारिवारिक जीवन में बहुत संघर्ष किया। उन्होंने पांच साल के अंतराल में अपने दो बेटों और पति को खो दिया। द्रौपदी मुर्मू के चार बच्चे थे दो बेटे और दो बेटी। 1984 में एक बेटी की मौत हो गई फिर 2009 और 2013 में एक एक कर दोनों बेटे चल बसे उसके बाद 2014 में पति श्याम चरण मुर्मू की मौत हो गई, लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। ये थी उनके संघर्ष की कहानी (Draupadi Murmu Struggle Story), लेकिन यहाँ हम आपको उनके प्यार की कहानी (Draupadi Murmu Love Story) बताते हैं।

20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के छोटे से गांव में जन्मीं द्रौपदी मुर्मू संथाल आदिवासी समुदाय  (Draupadi Murmu Santhal Tribal Community) से आती हैं। उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडू था, वे किसान थे। द्रौपदी मुर्मू की शुरूआती शिक्षा गांव के स्कूल में हुई, 1969 से 1973 तक आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ीं, उसके बाद ग्रेजुएशन के लिए भुवनेश्वर के रामा देवी वुमंस कॉलेज में एडमिशन ले लिया। द्रौपदी अपने गांव की पहली लड़की थी जो पढ़ने के लिए भुवनेश्वर गई थी।

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कॉलेज में पढाई के दौरान उनकी मुलाकात श्याम चरण मुर्मू नामक युवक से हुई, दोनों में दोस्ती हुई जो कब प्यार में बदल गई वे समझ ही नहीं पाये। श्याम चरण भी उस समय भुवनेश्वर के एक कॉलेज में पढाई कर रहे थे। दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और एक साथ जीवन बिताने का मन बना चुके थे ।

शादी की रजामंदी के लिए श्याम चरण ने द्रौपदी के पिता से मुलाकात की ठान ली, एक दिन वे शादी का प्रस्ताव लेकर द्रौपदी के पिता के पास पहुँच गए, श्याम के कुछ रिश्तेदार द्रौपदी के गांव में ही रहते थे तो उन्हें भी साथ ले गए।  लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी द्रौपदी के पिता शादी के लिए तैयार नहीं हुए।

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श्याम चरण ने ठान लिया कि शादी करेंगे तो द्रौपदी से और द्रौपदी ने भी तय कर लिया कि वे भी शादी केवल श्याम चरण से ही करेंगी। जब बात नहीं बनी तो श्याम चरण तीन दिनों तक द्रौपदी के गांव में डेरा जमकर बैठ गए, आखिरकार द्रौपदी के पिता बिरंचि नारायण ने शादी के लिए हाँ कर दी।

शादी की जब बात शुरू हुई तो द्रौपदी के पिता ने दहेज़ के विषय में लड़के वालों से चर्चा की, तय हुआ कि श्याम चरण के घर से द्रौपदी को एक गाय, एक बैल और 16 जोड़ी कपडे दहेज़ के रूप में दिए जायेंगे।  दरअसल द्रौपदी जिस संथाल आदिवासी समुदाय से आती हैं वहां लड़के वाले लड़की वालों को दहेज़ देते हैं। कुछ दिनों बाद दोनों की शादी हो गई।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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