दरअसल, उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल निवासी एक गुरिल्ले की विधवा अनुसूइया देवी, पिथौरागढ़ के मोहन सिंह और 29 अन्य ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि वह सशस्त्र सीमा बल (SSB, जिसको पहले विशेष सेवा ब्यूरो कहा जाता था) से शस्त्र प्रशिक्षण प्राप्त हैं। सरकार ने उनसे निश्चित मानदेय पर स्वयंसेवक के रूप में काम लिया। नाम परिवर्तन के साथ गृह मंत्रालय के अधीन आने के बाद 2003 में उन्हें भी SSB से संबद्ध कर दिया गया लेकिन इसके बाद उनसे कोई काम नहीं लिया गया यानि 2003 में SSB के गठन के बाद से उनसे काम लेना बंद कर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा कि मणिपुर के गुरिल्लाओं ने इस सम्बंध में मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मणिपुर हाईबकोर्ट ने इन गुरिल्लाओं को नौकरी में रखने व सेवानिवृत्ति की आय वालों को पेंशन व सेवानिवृत्ति के लाभ देने के निर्देश पारित किए थे। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था।
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इसके बाद मणिपुर सरकार ने वहां के गुरिल्लों को सेवा में रखा और तभी से वहां सेवानिवृत्ति की उम्र के गुरिल्लों और दिवंगत हुए गुरिल्लों की विधवाओं को सेवानिवृत्ति के लाभ दिए जा रहे हैं। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की एकलपीठ ने केंद्र सरकार को उत्तराखंड के गुरिल्लों को मणिपुर की भांति सुविधाएं देने के निर्देश दिए।