अहमदाबाद, डेस्क रिपोर्ट।गुजरात हाई कोर्ट ने रिटायर सरकारी कर्मचारियों को लेकर अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि सरकारी कर्मचारी की सेवानिवृति के बाद ना तो उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती और ना ही कोई आरोप पत्र जारी किया जा सकता है।
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गुजरात हाईकोर्ट ने हेमचंद्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय द्वारा अपने डिप्टी इंजीनियर भूपेंद्र पटेल के खिलाफ विभागीय कार्रवाई को अमान्य कर दिया। हाईकोर्ट का कहना है कि कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने के बाद सरकारी विभाग उसके खिलाफ ना तो विभागीय जांच शुरू और ना ही किसी कथित अनियमितता के लिए आरोप पत्र जारी सकता है। इतना ही नहीं अधिकारी किसी कर्मचारी को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने से नहीं रोक सकते।
दरअसल, उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय के इंजीनियर भूपेंद्र पटेल के खिलाफ अनियमितता को लेकर विश्वविद्यालय के द्वारा विभागीय कार्यवाही करने की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन इससे पहले उन्होंने सेवा के 20 साल पूरे होने के बाद सरकारी नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। इसके लिए उन्होंने अक्टूबर 2013 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन विश्वविद्यालय को जमा किया लेकिन विश्वविद्यालय के द्वारा उनके आवेदन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई ।
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इसके बाद जनवरी 2014 में भूपेंद्र पटेल सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हो गए। सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त होने के 21 महीने बाद विश्वविद्यालय ने सितंबर 2015 में उनके खिलाफ एक आरोप पत्र जारी कर दिया और विभागीय जांच शुरू करने की मांग की। इतना ही नहीं विवि के कार्यकारी परिषद ने भी 2017 में उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही करने का फैसला किया। इसके बाद मामले हाईकोर्ट पहुंच गया, जिसमें बताया गया कि उन्होंने आवेदन दिया था लेकिन स्वीकार या अस्वीकार नहीं किया गया ऐसे में गुजरात सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 2002 के नियम 48 के अनुसार 2014 में सेवानिवृत्त माना जाए।
इसके बाद हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि अगर किसी कर्मचारी ने कोई अवैध काम किया है तो सरकार उसकी पेंशन रोक सकती है, लेकिन उसकी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को नहीं रोका जा सकता। ऐसे में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी विभागीय जांच अमान्य होगी। और अंतत: हाईकोर्ट ने कर्मचारी को बड़ी राहत देते हुए कार्रवाई को अमान्य कर दिया ।