जानिए, इस सिपाही के ट्रांसफर पर क्यों फूट–फूट कर रोए बच्चे, पढ़े पूरी खबर

Amit Sengar
Published on -

नई दिल्ली,डेस्क रिपोर्ट। इस खाकी वर्दी का जितना सम्मान किया जाए उतना ही कम है। यह लोग एक सभ्य समाज की नींव तो रखते ही हैं, इसके अलावा विपरीत स्थितियों में डटकर हमारी सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करते हैं, लेकिन उन्नाव के सिपाही (constable rohit ) ने तो इससे पार जाकर एक ऐसा कार्य किया है, जिससे न जाने कितनों को प्रेरणा मिलेगी।

आलम यह था जब इस सिपाही का ट्रांसफर हुआ तो उन्नाव में सिर्फ बच्चे ही नहीं बड़े बुजुर्ग तक फूट-फूटकर रोए। बता दें कि उन्नाव में पोस्टेड सिपाही रोहित कुमार का ट्रांसफर उन्नाव से झांसी हो गया। उन्नाव में इस देश की सुरक्षा के अलावा रोहित ने इसके भविष्य की भी जिम्मेदारी संभाली, जहां उन्होंने सड़कों पर भीख मांगने वाले बच्चों का दाखिला प्राथमिक विद्यालय में कराया और जब बच्चे ज्यादा हो गए तब अपनी सैलरी से दो अध्यापक भी रखें। जब बच्चों को पता चला की उनके पालनहार का यहां से ट्रांसफर हो गया है, तो वह अपनी भावनाएं नहीं रोक सके और अपने नायक से लिपट कर खूब रोए।

“साल 2018 में मेरा ट्रांसफर झांसी सिविल पुलिस से लखनऊ GRP हो गया था। इसके बाद मेरी पहली पोस्टिंग उन्नाव रेलवे स्टेशन मिली। एक दिन ड्यूटी के दौरान जब मैं ट्रेन से रायबरेली जा रहा था। उन्नाव के बाद कोरारी सबसे पहला हाल्ट स्टेशन पड़ता है। मैंने देखा कि कुछ गरीब बच्चे ट्रेन में भीख मांग रहे और कुछ सामान बेच रहे हैं। मैंने उनमें से एक को बुलाकर उनकी पढ़ाई के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि वह पढ़ने नहीं जाते हैं। घर के हालात ऐसे हैं कि बच्चे छोटी उम्र में घर चलाने में सहयोग करते हैं। एक मिनट रुकने के बाद ट्रेन चलने लगी। फिर शाम को ड्यूटी खत्म कर मैं कोरारी गांव पहुंचा। वहां उन बच्चों के साथ उनके परिजनों के पास पहुंचा। हालांकि, बच्चों के मां बाप शुरुआत में मेरी बात सुनने से ही इंकार करते रहे। आखिरकार एक-दो बार जाकर किसी तरह मां-बाप को समझाकर 5 बच्चों को पढ़ने को तैयार कर लिया।”

उधर “बच्चों को पढ़ाना भी था, इसलिए मैंने अपनी ड्यूटी रात के समय लगवा ली। एक-दो दिन बाद मैं फिर कॉपी, किताब, पेंसिल अन्य सामग्री के साथ कोरारी रेलवे स्टेशन पहुंचा। वहां एक नीम के पेड़ के नीचे 5 बच्चों के साथ पाठशाला शुरू कर दी। मगर, यह सब इतना आसान नहीं था। अगले दिन ड्यूटी खत्म कर जब 10 किमी मोटरसाइकिल चला कर मैं वहां पहुंचा, तो उस दिन बच्चे नहीं आए। मैं फिर गांव पहुंच गया। वहां एक बार फिर बच्चों से लेकर बड़ों तक को समझाया। तकरीबन एक महीने बाद मेरी पाठशाला में बच्चों की संख्या 15 हो गई। यह मेरे लिए किसी अवार्ड से कम नहीं था।”

“इनमें जो लड़के बेहतर होते, उनका एडमिशन मैं स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में करवा देता। फिर उन्हें ट्यूशन की तरह अपनी पाठशाला में पढ़ाता। यह सिलसिला चल पड़ा। बरसात में जहां मैं पढ़ाता था, वहां पानी भर गया। इस पर मैंने एक कमरा किराए पर लेकर पढ़ाना शुरू कर दिया। तकरीबन दो महीने तक ऐसा ही चलता रहा। इसकी जानकारी जब डीपीआरओ साहब को हुई, तो उन्होंने पंचायत भवन की चाभी मुझे सौंप दी। अब मेरी पाठशाला पंचायत भवन में लगना शुरू हो गई। यहां बच्चे भी काफी बढ़ गए थे।”

“एक साथ इतने बच्चों को अकेले पढ़ाना संभव नहीं हो पा रहा था। इसलिए कंपटीशन की तैयारी करने वाले पूजा और बसंत को 2-2 हजार रुपए की सैलरी पर रख लिया। अब वह भी मेरे साथ बच्चों को पढ़ाने लगे थे। यह सैलरी मैं अपने पास से देता था। धीरे-धीरे बच्चे बढ़े, तो मददगार भी बढ़े। मेरे साथ कुछ और टीचर भी फ्री पढ़ाने को तैयार हो गए। इस समय दो लोग सैलरी पर तो चार लोग फ्री पढ़ा रहे हैं। बीते 4 साल में डेढ़ सौ बच्चे हो गए हैं।”

आपको बता दें रोहित के इस नायाब प्रयास के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है। उन्नाव के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रहे आनंद कुलकर्णी को जैसे ही रोहित के इस कार्य का पता चला तो उन्होंने यातायात कार्यालय मैं हुए समारोह के दौरान उन्हें सम्मानित किया था।


About Author
Amit Sengar

Amit Sengar

मुझे अपने आप पर गर्व है कि में एक पत्रकार हूँ। क्योंकि पत्रकार होना अपने आप में कलाकार, चिंतक, लेखक या जन-हित में काम करने वाले वकील जैसा होता है। पत्रकार कोई कारोबारी, व्यापारी या राजनेता नहीं होता है वह व्यापक जनता की भलाई के सरोकारों से संचालित होता है। वहीं हेनरी ल्यूस ने कहा है कि “मैं जर्नलिस्ट बना ताकि दुनिया के दिल के अधिक करीब रहूं।”

Other Latest News