बंदरों ने ली ढाई सौ कुत्तों की जान, गांव के लोग भी दहशत में

मुंबई, डेस्क रिपोर्ट। अक्सर इंसानों के बीच गैंगवार के चर्चे तो आपने सुने ही होंगे जिसमें दो गुट एक दूसरे की जान के प्यासे बने रहते हैं। पर क्या आपने कभी जानवरों की गैंगवार के बारे में सुना है? जी हां खबर है महाराष्ट्र के एक गांव की जहां पर बंदरों और कुत्तों के बीच पिछले 3 महीने से खूनी गैंगवार जारी है, और गांव के तमाम लोगों की कोशिशों के बावजूद यह खूनी संघर्ष रुकने का नाम नहीं ले रहा है।

घटना है महाराष्ट्र के मजलगांव के लावूल गांव की जो कि बीड जिले के अंतर्गत आता है। जानकारी के मुताबिक इस खूनी संघर्ष की शुरुआत तब हुई जब कुत्तों ने मिलकर एक बंदर के बच्चे को मार डाला। तब से यह बंदर झुंड बनाकर कुत्ते के बच्चों की मौका मिलते ही हत्या कर रहे हैं।

गांव वालों से मिली जानकारी के अनुसार यह बंदर झुंड में एकत्र होकर कुत्तों पर हमला करते हैं। इस हमले के पीछे जैसे ही उनके हाथ कोई पिल्ला लग जाता है वे उसे उठाकर किसी ऊंचाई वाली जगह जैसे पेड़ या किसी बिल्डिंग पर ले जाते हैं और वहां से नीचे फेंक कर मार डालते हैं। यह बंदर उस तरीके से अब तक लगभग 80 पिल्लों की जान ले चुके हैं जिसके बाद स्थानीय लोगों में भी काफी खौफ है। बड़ी बात यह है कि 3 महीने से जारी इस खूनी संघर्ष के बावजूद और स्थानीय लोगों की लगातार शिकायतों के बावजूद प्रशासन ने इस मामले में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है।

Courtsey : SaycheeseDGTL twitter account


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।