पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बड़ा झटका दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 3 अप्रैल को ममता सरकार द्वारा की गई 25,753 शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती को रद्द कर दिया है।
कोर्ट ने टीचर्स और नॉन-टीचिंग स्टाफ की नियुक्ति को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इसे सिस्टम में फ्रॉड और मैनिपुलेशन का उदाहरण बताया है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की अगुवाई में बेंच ने कोलकाता हाई कोर्ट द्वारा 22 अप्रैल 2024 को दिए गए फैसले को सही ठहराया। कोर्ट ने राज्य सरकार को 3 महीने के अंदर नई भर्ती शुरू करने का आदेश भी दिया है। हालांकि, जिन कर्मचारियों को नौकरी मिल गई है, उन्हें सैलरी वापस नहीं करनी होगी।

क्या था भर्ती का घोटाला?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पश्चिम बंगाल स्कूल सर्विस कमिशन की 2016 की भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। कोर्ट ने इसे मैनिपुलेशन और फ्रॉड बताया है। कोलकाता हाई कोर्ट ने भी पिछले साल इस भर्ती को रद्द कर दिया था, जिसके खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई थीं। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस फैसले से उनकी कमाई पर असर पड़ेगा और उनकी रोजी-रोटी छिन जाएगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि यह भर्ती पूरी तरह से धांधली और फ्रॉड से भरी हुई है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में सीबीआई जांच को लेकर बंगाल सरकार की याचिका पर 4 अप्रैल को सुनवाई होगी।
124 याचिकाएं दायर की गई थीं
जैसे ही कोलकाता हाई कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया, उसके बाद इस फैसले के खिलाफ 124 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें से एक याचिका पश्चिम बंगाल की ममता सरकार द्वारा भी दायर की गई थी। कोलकाता हाई कोर्ट ने अपने फैसले में बताया था कि इस मामले में ओएमआर शीट से छेड़छाड़ की गई है और रैंकिंग में भी हेराफेरी की गई है। इसके बाद कोलकाता हाई कोर्ट ने इस पूरी भर्ती को फर्जी करार दिया था और 25,753 शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती पर रोक लगा दी थी।