रीवा।
दूसरे चरण की वोटिंग के लिए एमपी में प्रचार थम चुका है। सोमवार को दमोह, टीकमगढ़, खजुराहो, सतना, होशंगाबाद, रीवा और बैतूल सीट पर वोट डाले जाने है। वर्तमान में इन सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है।कांग्रेस लगातार इन सीटों पर अपने धाक जमाने की कोशिश में लगी हुई है। लेकिन इनमें में कई ऐसी सीट है जहां बीजेपी या कांग्रेस ही नहीं बसपा भी अपना दम-खम दिखाती रही है ।हम बात कर रहे है विंध्य की पहचान कही जाने वाली रीवा संसदीय सीट की। यहां बीजेपी कांग्रेस को जीत के लिए बसपा से भी निपटना होगा। ऐसे में यहां मुकाबला रोचक होने वाला है।
इस सीट पर कांग्रेस को 6 बार, बसपा को 3 बार और बीजेपी को 3 बार जीत मिली है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इस सीट पर हमेशा ब्राह्मण चेहरे को मैदान में उतारती आ�� है और इस बार भी दोनों ने ब्राह्मण कार्ड खेला है। बीजेपी ने जहां एक बार फिर मौजूदा सांसद जनार्दन मिश्रा पर भरोसा जताया है तो कांग्रेस ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दिवंगत श्रीनिवास तिवारी के पौत्र और दिवंगत वरिष्ठ नेता सुंदरलाल तिवारी के पुत्र सिद्धार्थ तिवारी को मैदान में उतारा है।वही बसपा ने ओबीसी समीकरण को देखते हुए कुर्मी समुदाय के विकास पटेल को उम्मीदवार बनाया है। इसके चलते रीवा का चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के जनार्दन मिश्रा ने कांग्रेस के सुंदर लाल तिवारी को एक लाख साठ हजार मतों से मात दी थी। बसपा यहा तीसरे नंबर पर रही थी। पिछले 15 साल से कांग्रेस यह सीट नहीं जीत सकती है। जबकि बसपा इस सीट पर 1991, 1996 और 2009 में जीत दर्ज की है।जिसके चलते यहां मुकाबला एक बार फिर त्रिकोणीय हो चला है।हालांकि बीजेपी के लिए राहत यह है कि यहां विधानसभा चुनाव के दौरान आठों सीटे बीजेपी की झोली में गिरी है। कांग्रेस के लिए सालों बाद इस पर जीत हासिल करना चुनौती बना हुआ है। वही यहां बसपा भी काफ़ी मज़बूत स्थिति में खड़ी है।उसका करीब सवा-डेढ़ लाख वोट बैंक भी माना जाता है, लेकिन विधानसभा के नतीजे बताते हैं कि भाजपा ने ओबीसी, अजा और अजजा वर्ग में घुसपैठ बढ़ाई है।ऐसे में बसपा के लिए भी चिंता की बात है।