दमोह : भाई दूज के मौके पर जेल के बाहर लगी बंदियों के परिजनों की भीड़

Gaurav Sharma
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दमोह, गणेश अग्रवाल। दीपावली के बाद आने वाली भाई दूज के अवसर पर जेल में बंद बंदियों के लिए उनके परिजनों से मुलाकात कराने तथा भाई दूज का टीका लगाने के लिए जेल प्रबंधन द्वारा व्यवस्था की गई थी, लेकिन इस व्यवस्था के दौरान ना तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराया गया और ना ही एतिहाद के लिए सैनिटाइजर और मास्क का उपयोग हुआ। ऐसे में जेल में बंद बंदियों से मुलाकात में लापरवाही का मामला सामने आया है।

 

दरअसल, दमोह के जिला जेल में बंद बंदियों के परिजनों को भाई दूज के अवसर पर बीते वर्षों में भी मुलाकात कराई जाती रही है। लेकिन कोरोना के संक्रमण काल के बीच रक्षाबंधन त्योहार पर प्रतिबंध लगाया गया था, ऐसे में दीपावली की दूज पर इस प्रतिबंध को शिथिल करते हुए कोरोना संक्रमण का ध्यान रखते हुए मुलाकात कराए जाने की व्यवस्था जेल प्रशासन द्वारा की गई।

 

सुबह से लेकर दोपहर तक की गई इस व्यवस्था में कई लापरवाहियां नजर आई। जेल प्रबंधन द्वारा बंदियों से मिलने के लिए आए परिजनों के लिए सोशल डिस्टेंस के नियम तो बनाए गए, लेकिन उनका पालन नहीं कराया गया। कई परिजन मुंह पर मास्क के बिना ही लाइन में लगे दिखाई दिए। वही सैनिटाइजर का उपयोग भी कम ही नजर आया। जब जेल प्रबंधन से इस संबंध में पूछा गया तो वह इस बात से इनकार करते नजर आए कि नियमों का पालन नहीं हो रहा है।

हालांकि हमारी टीम के पहुंचने और यह पूछे जाने के बाद व्यवस्था में कुछ सुधार नजर आया, लेकिन कुल मिलाकर जेल में बंद बंदियों से मिलने के लिए आए परिजनों के ऊपर बंदिश कम ही नजर आई। बंदियों से मिलने के लिए आए परिजनों की आंखें नम होती नजर आई। वहीं उनके बच्चे भी रूआसे दिखाई दिए, क्योंकि लंबे अंतराल के बाद उनको उनके परिजनों से मुलाकात का मौका मिला था।

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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