Diwali 2023 : दिवाली का त्योहार बेहद करीब है। यह सनातन धर्म का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। देशभर में उत्साह और उमंग के साथ 5 दिनों तक धूमधाम के साथ इस त्योहार को मनाया जाता है। दशहरा की तरह ही दिवाली को भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने अपना 14 साल का वनवास इसी दिन समाप्त किया था और वह अयोध्या लौटे थे। उनके अयोध्या लौटने की ख़ुशी मनाते हुए अयोध्यावासियों ने अपने घरों में घी के दीये जलाए थे और फटाखे फोड़ते हुए श्री राम का स्वागत किया था।
उसके बाद से ही देशभर में कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दीपावली का त्योहार को धूमधाम से मनाया जाने लगा। इतना ही नहीं उस दिन के बाद से ही इसे अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक भी माना गया। दीपावली सनातन धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस दिन सभी लोग अपने घरों की साफ सफाई कर घर में लइटिंग्स लगाते हैं और दीये जलाते हैं।
सबसे खास बात ये है की दिवाली के त्यौहार पर आटे के दीये जलने का सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है। हर किसी के जहन में ये सवाल जरूर आता है कि आखिर दिवाली के खास त्योहार पर आटे के दीये क्यों जलाए जाते हैं और इसके पीछे का महत्व क्या है? अगर आपके मन में भी ये सवाल आया है तो आज हम आपको इसके पीछे का धार्मिक महत्व बताने जा रहे हैं तो चलिए जानते हैं –
Diwali पर आटे के दीये जलाने का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छोटी दिवाली के दिन आटे का दिया जलाने का काफी ज्यादा महत्व माना जाता है। इस दिन आटे का दिया अगर कोई अपने घर में जलाता है तो ये शुभ होता है। दरअसल इस दिन यमदेव की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर आटे का दिया जलाकर यमदेव की पूजा अर्चना की जाए तो नर्क से मुक्ति मिल जाती है, साथ ही यमदेव की बुरी नजर भी परिवार के किसी भी सदस्य पर नहीं पड़ती है।
इसलिए कहा जाता है की छोटी दिवाली के दिन यमदेव की पूजा करते समय हमेशा आटे का दिया ही जलाना चाहिए और उसे दिए को घर के हर कोने-कोने में घूमना चाहिए उसके बाद दक्षिण दिशा में उसे रखना चाहिए। क्योंकि दक्षिण दिशा यमदेव की दिशा मानी गई है। ऐसा करने से यमदेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर आने वाली बला को टाल देते हैं।
डिस्क्लेमर – इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। एमपी ब्रेकिंग इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह लें।