Gita Updesh : श्रीमद्भगवद्गीता सनातन धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ में से एक है। जिसमें धर्म योग, कर्म योग और भक्ति योग के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है। साथ ही इसमें मोक्ष प्राप्ति के मार्ग भी बताए गए हैं। दरअसल, गीता उपदेश भगवान श्री कृष्णा और अर्जुन के बीच हुए संवाद का विस्तृत वर्णन है जोकि महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन को दिए गए थे। बता दें कि अर्जुन युद्ध के मैदान में अपने कर्तव्यों को लेकर संदेह और भ्रम की स्थिति में थे, जो उन्होंने माधव से साझा किया था। उनकी इस दुविधा को खत्म करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने जीवन के रहस्य को बताते हुए विश्व रूप प्रकट किया था। इसके बाद कुरुक्षेत्र की रणभूमि में युद्ध शुरू हुई और 18 दिन बाद पांडवों को कौरवों पर जीत हासिल हुई। इसके बाद अखंड भारत का निर्माण हुआ। गीता में दिए गए उपदेश आज भी उतने ही महत्वपूर्ण है, यह मनुष्य को जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं। इन उपदेशों का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलता है। जो लोग गीता उपदेश की बातों को अपनाते हैं, उस व्यक्ति के अंदर से क्रोध और इर्षा की भावना खत्म हो जाती है। वह किसी भी चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना कर पाने में सक्षम हो जाते हैं। तो चलिए जानते हैं गीता के कुछ उपदेशों के बारे में विस्तार से…
पढ़ें गीता उपदेश
- गीता उपदेश के अनुसार, यदि किसी काम को करने में डर लगे तो याद रखना यह संकेत है कि आपका काम वाकई में बहादुरी से भरा हुआ है। दरअसल, जब भी किसी काम को करने में डर लगे, तो उसे साहस और कर्तव्यभाव से करना चाहिए। क्योंकि यह डर हमारे भीतर की बहादुरी और कर्तव्यपालन की भावना को सामने लाता है।
- गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह समझाने का प्रयास किया है कि व्यक्ति की दृष्टि केवल शारीरिक नेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के आंतरिक दृष्टिकोण और मानसिक अवस्था से भी जुड़ी होती है। बता दें कि दृष्टि केवल शारीरिक नेत्रों की दृष्टि नहीं है, बल्कि यह मन, बुद्धि और आत्मा की स्थिति से भी जुड़ी हुई है। इसलिए यह इंसान की भावनाओं और मानसिक स्थिति पर निर्धारित है कि आप बाहरी दुनिया को कैसे देखते हैं और कैसे अनुभव करते हैं।
- गीता उपदेश के दौरान भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि भोग से मिलने वाला सुख थोड़ी देर के लिए होता है, जबकि त्याग से इंसान को स्थायी सुख मिलता है। इसलिए ईश्वर की कृपा से मिलने वाली वस्तु को स्वीकार करें। अन्यथा, कुसंगति से मनुष्य अपने कर्मों को नुकसान पहुंचता है और वह गलत राहों पर चल पड़ता है, जिस कारण उन्हें आगे चलकर दंड भोगना पड़ सकता है। इसलिए हमेशा ईश्वर की भक्ति करें। वह किसी भी परिस्थिति में आपका साथ नहीं छोड़ते। मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए और ईश्वर की भक्ति और कृपा पर विश्वास रखते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में स्थायी सुख और शांति प्राप्त होती है।
- भगवान श्री कृष्ण के अनुसार, मनुष्य को स्वयं को ईश्वर में लीन कर देना चाहिए क्योंकि किसी भी मनुष्य के लिए ईश्वर से बड़ा कोई नहीं होता और ना ही उनके अलावा कोई होता है। उन्हें जब भी कोई काम करना चाहिए, तो हमेशा प्रभु का नाम लेकर ही करना चाहिए।
- गीता उपदेश के अनुसार, जीत और हार इंसान की सोच पर निर्भर करता है। अगर आप पहले से ही इस बात को ठान लेंगे कि आप हार जाएंगे, तो निश्चित ही आपकी हार होगी और अगर आप ठान लें कि नहीं मुझे जितना है तो आपकी जीत निश्चित होगी। क्योंकि इसके लिए आप कड़ी मेहनत करेंगे।
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