भारत में एक मंदिर है और हर छोटे-बड़े मंदिर की अपनी अलग-अलग मान्यताएं और विशेषताएँ हैं। इनमें से कुछ मंदिरों को धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के कारण। कुछ मंदिर से जुड़ी कहानियाँ तो ऐसे हैं जिन्हें सुनकर हर कोई दंग रह जाता है। उत्तराखंड में स्थित गोलू देवता का मंदिर भी इन्हीं मंदिरों में से एक है, जो न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध हैं।
इसे घंटियों वाला मंदिर भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ लाखो घंटियाँ टँगी हुई हैं। गोलू देवता की मान्यता है कि वह अपने भक्तों को सच्चा न्याय देते है और आज भी कई गाँव में लोग उनकी अदालत में न्याय पाने के लिए आते हैं। इस मंदिर से जुड़ी कई दिलचस्प मान्यताएं हैं जो इसे और भी ख़ास बनाती है।

चिट्ठियों और घंटियों से जुड़ी श्रद्धा की परंपरा
इस मंदिर में जो लोग स्वयं नहीं आ पाते, वी अपनी चिट्ठियां के ज़रिए अपनी फरियाद भेजते हैं। ये चिट्ठियां मंदिर में रखी जाती है और जब किसी की मनोकामना पूरी होती है तो वह श्रद्धालु मंदिर में आकर घंटी चढ़ाकर धन्यवाद अर्पित करता है। यही कारण है कि इस मंदिर में हर जगह घंटियाँ टंगी हुई है, जो यहाँ आने वाले भक्तों के विश्वास और आस्था का प्रतीक बन चुकी है।
यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहाँ इस तरह से न्याय की परंपरा निभाई जाती है। गोलू देवता को भगवान शिव का अवतार माना जाता है, जो अपने भक्तों की हर समस्या का समाधान करते हैं और उन्हें सही न्याय दिलाते।
न्याय की आस में भक्तों की श्रद्धा
इस मंदिर को लेकर ऐसा कहा जाता है कि जो भी अपनी समस्या लेकर यहाँ आता है, वह गोलू देवता की दर वार से निराश नहीं लौटता। कई लोग यहाँ अपनी प्रॉपर्टी विवाद, क़ानूनी मामले और व्यक्तिगत समस्याओं को लेकर आते हैं, और अपनी अर्जियां लिखकर मंदिर में जमा करते हैं। लोगों का ऐसा मानना है कि गोलू देवता हर सच्ची प्रार्थना सुनते हैं और उनके भक्तों को न्याय दिलाने में मदद करते हैं। यही वजह है कि इस मंदिर में हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ पाई जाती है।
राजा झल राय के पुत्र और न्याय के रक्षक
ऐतिहासिक रूप से गोलू देवता जिसे न्याय का दिखता कहा जाता है वे राजा झल राय और उनकी पत्नी कालिंका के पुत्र थे। उनका जन्मस्थान चंपावत को माना जाता है, जहाँ उनके जीवन से जुड़ी कई कथाएँ और मान्यताएं प्रचलित है। लोग मानते हैं कि गोलू देवता सच्ची नियत और मेहनत से न्याय दिलाने वाली देवता है।