पीतांबरी पहनकर हिन्दू-मुस्लिम साथ मनाते हैं त्योहार, जानिएं निजामुद्दीन औलिया की दरगाह में क्यों होता वसंत पंचमी का श्रृंगार?

'सबका मालिक एक' यह कहते हुए तो हमने बहुत बार सुना है। लेकिन सभी धर्मों के त्यौहार अलग अलग देखे है। लेकिन शायद ही कुछ लोगों को पता होगा की वसंत पंचमी का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार है। जिस दिन चारों धर्मों के लोग एक जगह दिखाई देते है और वसंत का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाते है।

Rishabh Namdev
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Hindus and Muslims celebrate the festival together: आपको बता दें वसंत पंचमी के अवसर पर दिल्ली के निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर वसंत का त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस त्योहार में यहां हिन्दू, मुस्लिम, सिख, और ईसाई सभी धर्म के लोग एक साथ शामिल होते हैं और एक दूसरे के साथ वसंत की खुशी मनाते हैं।

आपको सुनकर हैरानी होगी लेकिन दिल्ली के निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर वसंत का त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन जिस तरह से बांके बिहारी का मंदिर पीले रंगो में रंगा हुआ दीखता है। उसी तरह इसी दिन निजामुद्दीन औलिया की दरगाह भी पूरी पीले फूलों से और वस्त्रों से सजी हुई नजर आती है।

दूर-दराज से निजामुद्दीन औलिया के मुरीद वसंत पंचमी को खास रूप से मनाते हैं। आपको बता दें इस साल भी हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह में वसंत पंचमी पर भी पीली चादर चढ़ाई गई है। यह अद्भुत परंपरा 700 साल से अधिक समय से जारी है। अब आपके मन में इसे और जानने का सवाल उठ रहा होगा। तो चलिए हम आपको बताते है ऐसा क्यों होता है।

मुस्लिमों में कैसे शुरू हुआ वसंत का त्यौहार?

इसकी जानकारी देते हुए मुख्य खादिम काशिफ साहब बताते हैं कि हजरत निजामुद्दीन औलिया ने वसंत पंचमी को अपना पसंदीदा त्योहार बनाया था। इसका आरंभ 12वीं शताब्दी में हुआ था, जब अमीर खुसरो ने उदास निजामुद्दीन औलिया को खुश करने के लिए यह त्योहार मनाया था।

अमीर खुसरो ने कैसे मनाया वसंत पंचमी:

कहते है एक दिन हजरत निजामुद्दीन औलिया अपने भांजे की मौत के सदमे में खुद को कमरे में कैद कर लिया था, और सभी लोगों से मिलना जुलना छोड़ दिया था। जब यह बात अमीर खुसरो को पता लगी तो अपने पीर को उदास देख उन्होंने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन हजरत निजामुद्दीन अपने कमरे से बाहर नहीं आए। कहते है उसी दिन वसंत का त्यौहार था। जब खुसरो ने हिन्दू महिलाओं को वसंत पर पील रंग में सजे हुए देखा और भगवान् के मंदिर में पूजा करते हुए देखा तो अमीर खुसरो ने भी अपने पीर को खुश करने के लिए यहीं किया। जब खुसरो को हजरत निजामुद्दीन ने वसंत के भजन गाते हुए सुना तो उन्होंने अपने कमरे का दरवाजा खोला और देखा की खुसरो पीले वस्त्रों से सजे है। तो हजरत निजामुद्दीन बहुत खुश हुए। जिसके बाद से यह त्यौहार हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर बनाया जाता है।

यहां के खादिम काशिफ साहब कहते हैं, “हजरत निजामुद्दीन औलिया का संबंध निजामुद्दीन दरगाह से है, जो सभी धर्मों के लोगों को एक साथ ला रहा है। हम सब मिलकर यहां वसंत पंचमी का जश्न मना रहे हैं और एक-दूसरे के साथ भाईचारा बड़ा रहे हैं।”


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मैंने श्री वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय इंदौर से जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। मैं पत्रकारिता में आने वाले समय में अच्छे प्रदर्शन और कार्य अनुभव की आशा कर रहा हूं। मैंने अपने जीवन में काम करते हुए देश के निचले स्तर को गहराई से जाना है। जिसके चलते मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार बनने की इच्छा रखता हूं।

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