दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन (Govardhan 2025) पर्व भारतीय संस्कृति की एक अनमोल परंपरा है। इस दिन लोग गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं, जो केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि प्रकृति और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। मान्यता है कि गोवर्धन की पूजा से घर में सुख-समृद्धि, खुशहाली और परिवार में सौभाग्य बढ़ता है। यह पर्व बच्चों और बड़ों दोनों के लिए उत्साह और श्रद्धा का विशेष अवसर लेकर आता है।
आज के समय में जब आधुनिक जीवनशैली ने हमारी परंपराओं को प्रभावित किया है, फिर भी गोबर से गोवर्धन बनाने की प्रथा जीवंत है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि हमारी धरती और गाय माता के प्रति सम्मान का भाव भी दर्शाती है। लोग इसे सजाने में फूल, रंगोली और छोटी-छोटी मूर्तियों का उपयोग करते हैं, जिससे यह पर्व और भी भव्य और दर्शनीय बन जाता है। गोवर्धन पूजा के माध्यम से समाज में एकता, श्रद्धा और पारिवारिक मूल्यों को भी प्रोत्साहन मिलता है।
क्यों बनाते हैं गोबर से गोवर्धन? (Govardhan Puja 2025)
शास्त्रों के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र देव का अभिमान तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया, तब से इस पर्व की शुरुआत हुई। इस दिन गाय, गोबर और धरती माता की पूजा का विधान है क्योंकि यही जीवन का आधार हैं। गोबर को “पवित्र तत्व” माना गया है, यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और वातावरण को शुद्ध बनाता है। यही कारण है कि इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत, गौ माता, श्रीकृष्ण और बृजवासियों की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं।
सामग्री तैयार करें
- ताज़ा गाय का गोबर
- थोड़ी सी मिटटी (गोबर को आकार देने में मदद के लिए)
- फूल, तुलसी पत्ता, कंडे, दीया, हल्दी, कुमकुम
- लकड़ी की प्लेट या चौका
गोबर से गोवर्धन बनाने की विधि
गोबर तैयार करना
गोबर से गोवर्धन बनाने के लिए सबसे पहले साफ और ताजा गोबर चुनें। यह सुनिश्चित करें कि इसमें किसी प्रकार की गंदगी या कचरा न हो। अगर गोबर थोड़ा सूखा हो, तो उसमें थोड़ा पानी मिलाकर चिकना और मोल्डेबल बना लें, ताकि इसे आसानी से आकार दिया जा सके। हाथ में ग्लव्स पहनना बेहतर होता है, इससे बदबू और हाथों की गंदगी से बचा जा सकता है। आप चाहें तो गोबर में थोड़ी मिट्टी भी मिला सकते हैं। इससे पर्वत और आकृतियों को आकार देना आसान हो जाता है।
इसके बाद क्या-क्या बनाएं
गोबर तैयार होने के बाद अब आंगन या खुले स्थान को पहले साफ कर लें। जगह बिल्कुल साफ होनी चाहिए ताकि गोवर्धन स्थिर रहे। सबसे पहले गोबर को एक बड़ा ढेर बनाकर पहाड़ी का आकार दें। यह गोवर्धन पर्वत का प्रतीक होता है। इसे आकार देते समय ध्यान रखें कि ऊँचाई और चौड़ाई संतुलित हो, ताकि यह वास्तविक पर्वत जैसा दिखे।
गोबर से छोटे-छोटे गोले बनाकर गाय, बछड़े और पेड़ की आकृतियां तैयार करें। ये आकृतियां न केवल दिखने में सुंदर होती हैं, बल्कि पूजा के समय आध्यात्मिक महत्व भी बढ़ाती हैं। पहाड़ी के बीच में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा रखी जाती है। यह गोवर्धन पूजा का केंद्रीय आकर्षण होती है। प्रतिमा के आसपास फूल, फूलों की माला, खील और हल्दी-कुमकुम से सजावट करें। इससे गोवर्धन और भी भव्य और शुभ दिखता है।
सजावट का महत्व
फूल और रंगीन सामग्री से सजाने से न केवल सुंदरता बढ़ती है, बल्कि शुभ ऊर्जा का संचार भी होता है। अब फूलों की पंखुड़ियों, तुलसी के पत्तों और रंगोली से गोवर्धन को सजाएं। आसपास छोटे दीये जलाएं और सुगंधित धूप जलाकर वातावरण को पवित्र बनाएं।
पूजा विधि
- सुबह स्नान कर भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा करें।
- गोवर्धन को पंचामृत, जल, फूल और मिठाई से अर्पित करें।
- 108 बार “गोवर्धनधारी श्रीकृष्ण” का नाम जपें।
- अंत में परिवार के सभी सदस्य “परिक्रमा” करें और प्रसाद ग्रहण करें।





