Lord Ram Jala Samadhi Katha : त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पौराणिक कथा हर कोई जानता है। रामायण में भगवान राम से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। आज भगवान श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या के लिए काफी बड़ा दिन है। यह माना जाता है कि भगवान राम की पूजा करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
आज हम आपको भगवान राम की जल समाधि को लेकर कथा बताने वाले हैं, ताकि इसके पीछे प्रचलित पौराणिक कथाओं के बारे में बताएंगे।
पहली कथा
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब माता सीता धरती माता की गोद में समा गईं, तो भगवान राम अत्यंत दुखी हो गए। उनके वियोग में प्रभु श्री राम ने यमराज की सहमति से सरयू नदी के गुप्तार घाट पर जल समाधि ले ली। तब से यह घाट भक्तों के बीच पवित्र और प्रसिद्ध हो गया है।
दूसरी कथा
वाल्मीकि रामायण की एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान श्री राम और यमराज के बीच गुप्त चर्चा चल रही थी। इस चर्चा की शर्त यह थी कि इसके बारे में किसी को भी जानकारी नहीं होनी चाहिए। यदि कोई इस नियम का उल्लंघन करता, तो उसे मृत्यु दंड दिया जाता। भगवान राम ने यमराज से यह वचन दिया और लक्ष्मण जी को द्वारपाल बना दिया। इसी दौरान दुर्वासा ऋषि वहां पहुंचे और भगवान राम से मिलने की इच्छा व्यक्त की। लक्ष्मण जी ने उन्हें बहुत समझाने का प्रयास किया, लेकिन ऋषि नहीं माने और क्रोध में आकर भगवान राम को श्राप देने की बात कही। स्थिति को संभालने के लिए लक्ष्मण जी ने स्वयं की परवाह न करते हुए दुर्वासा ऋषि को कक्ष में प्रवेश की अनुमति दे दी। इससे गुप्त चर्चा भंग हो गई।
हनुमान को दी ये आज्ञा
भगवान राम ने अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण जी को राज्य से निष्कासित कर दिया। इसके बाद लक्ष्मण जी ने सरयू नदी में जाकर जल समाधि ले ली। इस घटना से भगवान राम बेहद दुखी हुए और उन्होंने भी सरयू नदी में जल समाधि लेने का निर्णय लिया। भगवान राम के साथ स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आए सभी देवी-देवता भी जल समाधि लेकर अपने लोक को वापस लौट गए। हालांकि, भगवान विष्णु की आज्ञा से रामभक्त हनुमान पृथ्वी लोक पर ही रह गए और यह माना जाता है कि वे आज भी मानव लोक में जीवित हैं।
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