दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। अक्सर ऐसा कहा जाता है कि सफलता का सफर न सिर्फ मुश्किल बल्कि तकलीफ़ों से भी भरा होता है। और इन तकलीफ़ों और मुश्किलों को हराकर जो आगे बढ़ता है वही एक दिन इतिहास रच देता है। ऐसा ही कुछ सफर इन दिनों टोक्यो ओलिंपिक में भाग ले रहे भारतीय खिलाड़ियों से भी जुड़ा है। टोक्यो ओलंपिक्स में ब्रांज मेडल जीतने वाली इंडियन हाकी टीम के स्टार खिलाड़ी सुमित कुमार का भी यह सफर कुछ इसी तरह मुश्किलों भरा रहा लेकिन सुमित ने हार नही मानी, अभावों के बावजूद सुमित डटे रहे और आज नतीजा है कि ओलंपिक्स में सुमित भारतीय हॉकी टीम का सितारा बनकर उभरे है। सुमित ने मां-बाप के संघर्ष को सफल कर दिया। सुमित सोनीपत जिले कुराड गाँव के रहने वाले है।
जानकर हैरानी होगी कि हॉकी के मुकाबलों में गुड लक के लिए सुमित अपनी स्वर्गीय मां की फोटो लगी लाकेट पहन कर मैच में उतरे थे। सुमित ने ये लाकेट अपनी मां के झुमके तुड़वा कर बनवाया था। सुमित को उम्मीद थी कि इससे उनका भाग्य चमकेगा। सुमित ने अपनी माँ से वादा किया था कि वह उन्हें टोक्यो लेकर जाएगा लेकिन ओलिंपिक से करीब छह माह पहले सुमित की मां का निधन हो गया।
सुमित का बचपन बेहद गरीबी में बीता है। एक वक्त पर खाने तक के लाले थे। पिता प्रताप सिंह मुरथल के होटलों में मजदूरी करते थे। वहीं, तीनों भाई सुमित, अमित और जयसिंह अपने पिता का बोझ कम करने उनकी मदद करते थे वही सुमित ने हॉकी में जी जान लगाकर मेहनत की है। आज उसी मेहनत का नतीजा है कि उसकी टीम ने ओलिंपिक में कांस्य पदक जीत कर इतिहास रचा है। सुमित मां को भी अक्सर टाक्यो ओलिंपिक में साथ ले जाने को कहता था, लेकिन सुमित का यह सपना पूरा न हो सका। सुमित ने माँ के झुमकों का लॉकेट बनवाकर गले से लगाकर यही महसूस किया होगा कि माँ साथ है।