Mahakumbh 2025: महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का एक अभिन्न हिस्सा है जो आस्था और परंपरा का प्रतीक बनकर हर 12 साल में प्रयागराज में आयोजित होता है। यह मेला न सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है बल्कि इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व भी गहरे और आकर्षक हैं।
महाकुंभ मेले में हर बार लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर महाकुंभ की शुरुआत कब और कैसे हुई। बताया जाता है कि महाकुंभ का आयोजन तब से होता आया है, जब देवताओं और राक्षसों ने अमृत मंथन किया था। चलिए इसके इतिहास के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
समुद्र मंथन से जुड़ा है कुंभ मेले का कनेक्शन
बताया जाता है कि अमृत के लिए जब राक्षसों और देवताओं के बीच युद्ध हुआ था, इस समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश की कुछ बूंदें चार पवित्र जगहों पर गिरी थी, जिनमें हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज शामिल है। यही कारण है कि महाकुंभ भारत की इन चार जगह पर होता है।
इसके अलावा महाकुंभ का ऐतिहासिक उल्लेख प्राचीन शिलालेखों से भी मिलता है। इस बड़े और विशाल आयोजन में शामिल नागा साधुओं की परंपरा, शाही स्नान और इसका ज्योतिष महत्व आज भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
850 साल पहले शुरू हुई थी ये परंपरा
अगर बात की जाए कि महाकुंभ मेले का आयोजन कब से शुरू हुआ है, तो इसके सबसे पहले आयोजन की सटीक जानकारी प्राचीन ग्रंथो में दर्ज नहीं है। विद्वानों के अनुसार महाकुंभ की परंपरा लगभग 850 साल पहले शुरू हुई है और हर 12 साल में प्रयागराज में इसका आयोजन होता है।
साल 2025 में कब शुरू होगा महाकुंभ मेला
साल 2025 का महाकुंभ मेला 13 जनवरी से शुरू होने जा रहा है और यह 26 फरवरी तक चलेगा। इस महाकुंभ मेले का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में होने जा रहा है। महाकुंभ मेले में देश-विदेश के लोग दर्शन के लिए आते हैं, लाखों करोड़ों श्रद्धालु संगम तट पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में डुबकी लगाकर अपने पापों को धोते हैं और पुण्य की प्राप्ति करते हैं।
महाकुंभ मेले के दौरान शाही स्नान की तिथियां जानना बहुत जरूरी है। जिससे कि श्रद्धालु इन तिथियों में महाकुंभ मेले में शामिल हो सके और अपने पापों से मुक्ति पा सके।
14 जनवरी 2025, मकर संक्रांति
29 जनवरी 2025, मौनी अमावस्या
3 फरवरी 2025, बसंत पंचमी
12 फरवरी 2025, माघ पूर्णिमा
26 फरवरी 2025, महाशिवरात्रि
इन पवित्र अवसरों पर संगम तट पर डुबकी लगाकर भक्त अपने पापों से मुक्ति और आत्मिक शुद्धि का अनुभव करते हैं, यह आयोजन धार्मिक स्थल परंपरा का अद्भुत संगम है।