Home delivery : 1935 में ऐसे होती थी होम डिलीवरी, देखिये दुर्लभ फोटो

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। आजकल होम डिलीवरी (home delivery) बहुत सामान्य बात हो गई है। ऑनलाइन (online shopping) सारी चीजें मौजूद हैं और आप खाने पीने की चीजों से लेकर दवाइयां, कपड़े, जूते, बैग, फर्नीचर, इलेक्ट्रॉनिक आयटम और सोने चांदी के गहने तक ऑर्डर कर सकते हैं। ऐसी कोई चीज़ नहीं, जो अब आपके घर तक न पहुंच पाए।

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ऑनलाइन शॉपिंग और होम डिलीवरी का फायदा ये हुआ है कि अब आपको बाजार के धक्के खाने की जरुरत नहीं। बस इंटरनेट की मदद से एक क्लिक पर सारी चीजें मौजूद है। आपको जो चाहिए वो ऑर्डर कीजिए और चीज आपके घर हाजिर। इसमें तो अब बहुत सारे विकल्प भी मिलने लगे हैं। फूड डिलीवरी में अगर आपका खाना समय पर नहीं पहुंचा, स्वाद ठीक नहीं है या डिलीवरी बॉय से आपको कोई परेशानी है तो आप बाकायदा शिकायत कर सकते हैं और आपको पैसा रिफंड भी हो जाता है। वहीं अगर आपने कपड़े या एसेसरी ऑर्डर की है और वो आपको सूट नहीं कर रही तो उसे भी बिना किसी परेशानी के एक्सचेंज या रिटर्न कर सकते हैं। समय के साथ साथ होम डिलीवरी के विकल्पों में बहुत सुधार हुआ है और यही कारण है कि अब लोगों का रूझान ऑनलाइन शॉपिंग की तरफ काफी बढ़ गया है।

थर्टी मिनिट्स..नहीं तो फ्री। ये कैप्शन आपने कई फूड ब्रांड्स के साथ सुना होगा। लेकिन अगर आप कुछ 80-85 साल पीछे लौटे और इस आइडिया के बारे में सोचें तो क्या पाएंगे। आज हम आपको एक दुर्लभ फोटो (rare photo) दिखाने जा रहे हैं जो टोक्यो की है। ये सन 1935 में खींची गई तस्वीर है जिसमें एक लड़का साइकिल पर सवार है। वो एक हाथ से साइकिल चला रहा है और दूसरे हाथ में उसके पास ढेर सारी ट्रे हैं। ये खाने की ट्रे हैं जो एक के ऊपर एक रखी हुई हैं और इतनी सारी है कि देखकर अचरज हो रहा है कि उसने संभाली हुई कैसे है। ये एक डिलीवरी बॉय है जो 1935 में खाना होम डिलीवर करने जा रहा है। इसका मतलब उस समय भी होम डिलीवरी का कॉन्सेप्ट था..ये बात अलग है कि तब आज की तरह ये बहुत प्रचलित नहीं था और इसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ती थी।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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