शिवपुरी, मोनू प्रधान। गरीब आदिवासी समुदाय के बंधुआ मजदूरों सहरिया जनजाति के लोगों को उचित मान-सम्मान दिलाने के अधिकार के सरकारी प्रयास कागजों पर ही नज़र आते हैं लेकिन वादों और दावों का हकिकत से कम ही वास्ता रहा है।
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(Shivpuri News) ग्वालियर चम्बल संभाग में सहरिया आदिवासी गांव के साहूकारी के ब्याज तले दब कर दशकों से जीवन गुजारने पर मजबूर है। इन सबके बीच आशा की एक किरण के रूप में सहरिया क्रांति सार्थक प्रयास के रूप में देखी जा रही है। सहरिया क्रांति संयोजक संजय बेचैन बंधुआ मजदूरों के हालात में सुधार हेतु लगातार प्रयासरत हैं। 1975 में बने कानून ने बंधुआ मजदूरी को संज्ञेय दंडनीय अपराध घोषित कर कुछ राहत तो दी लेकिन कहीं ना कहीं इस कानून का सख्ती से पालन नहीं किया गया।