राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के सभी प्रायवेट स्कूलों को कोरोना काल के दौरान केवल ट्यूशन फीस लेने के लिये कहा गया है और सरकार द्वारा इस संबंध में दो बार आदेश जारी किए गए हैं। इसी के साथ पहली से लेकर पांचवीं क्लास तक ऑनलाइन क्लासेस लिए जाने पर भी रोक लगाई गई है। ये बात सोमवार को राज्य सरकार द्वारा जबलपुर हाईकोर्ट में अपना जवाब देते हुए कही गई है जिसे चीफ जस्टिस एके मित्तल तथा जस्टिस वीके शुक्ला की डिवीजन बेंच द्वारा रिकॉर्ड पर लिया गया। इसी के साथ सीबीएसई व अन्य अनावेदकों को अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए कोर्ट ने 10 अगस्त की तारीख दी है।
बता दें कि प्रायवेट स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वसूली को लेकर नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ पीजी नाजपाण्डे व रजत भार्गव द्वारा ये बात उठाई गई है कि हाईकोर्ट की इंदौर बेंच और जबलपुर की सिंगल बेंच ने फीस वसूली को लेकर दो तरह के आदेश पारित किए हैं, जिससे भ्रम और विरोधाभास की स्थिति बन गई है। इसी कारण कई स्कूल सरकार के आदेश का पालन भी नहीं कर रहे हैं। दरअसल 24 जून को इसी मुद्दे पर जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन की सिंगल बैंच ने आदेश देते हुए कहा था कि प्रायवेट स्कूल इस समय ट्यूशन फीस को छोड़कर किसी दूसरे मद में कोई राशि नहीं वसूल सकते हैं। लेकिन इससे पहले 15 जून को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ द्वारा प्रायवेट स्कूलों की याचिका पर सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी गई थी, जिसमें सरकार द्वारा ट्यूशन फीस छोड़कर किसी भी अन्य तरह की फीस वसूलने की मनाही की गई थी। और इस तरह एक ही मामले पर दो तरह के फैसले आने के बाद अनिर्णय की स्थिति बन गई थी जिसे लेकर अब इस मामले की सुनवाई जबलपुर में चीफ जस्टिस की बेंच के समक्ष हो रही है।
फीस के साथ ही सरकार द्वारा कक्षा 1 से लेकर 5 तक के बच्चों की ऑनलाइन क्लास लेने का मुद्दा भी उठाया गया है। सरकार का कहनाहै कि मोबाइल से ऑनलाइन क्लासेस के कारण छोटे बच्चों की आंखों पर दुष्प्रभाव पड़ता है और विश्व स्वास्थ्य संगठन व इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी इसे माना है। सरकार ने ऑनलाइन क्लासेस के बहाने प्रायवेट स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वसूलने का विरोध करते हुए अपना पक्ष प्रस्तुत किया, जिस मामले पर अब दूसरे पक्ष को 10 अगस्त को जवाब प्रस्तुत करना है।