ग्वालियर, अतुल सक्सेना। भूमाफिया कहकर राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) पर हमलावर कांग्रेस ने एक बार फिर सिंधिया पर बड़ा हमला बोला है। कांग्रेस ने सिंधिया परिवार पर वफादार कुत्ते की समाधि की भूमि पर कब्जा कर अवैध रूप से बेचने के गम्भीर आरोप लगाए हैं। सिंधिया ने भले ही भू माफिया के आरोप पर चुप्पी तोड़कर कांग्रेस (Congress) को जवाब दिया हो लेकिन कांग्रेस दस्तावेजी सबूतों के साथ इस बात को सिद्ध करने पर तुली है कि सिंधिया (Scindia) परिवार ने शहर की बेश कीमती जगहों पर सांठ गाँठ कर उसपर कब्जा किया और फिर उसे बेच दिया।
शुक्रवार को प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष मुरारीलाल दुबे एवं ग्वालियर-चम्बल संभाग के मीडिया प्रभारी केके मिश्रा ने सिंधिया परिवार पर निरंतर लगाये जा रहे विभिन्न भूमि घोटालों की श्रृंखला के चौथे हमले में अपने वफादार कुत्ते की समाधि की भूमि को भी अवैध रूप से बेच दिये जाने का गंभीर आरोप लगाया है।दोनों नेताओं ने कहा कि आजादी के संग्राम और राजनीति में गद्दारी के पर्याय बन चुके सिंधिया परिवार को “वफादरी” शब्द से ही कितनी नफरत है उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस परिवार ने अपने वफादार “कुत्ते” की मौत के बाद बनवाई गई उसकी समाधि को भी बेच खाया।
भूमाफिया के आरोपों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तोड़ी चुप्पी
अपने इस आरोप को स्पष्ट करते हुये उन्होंने कहा कि यह समाधि ग्राम महलगांव तहसील ग्वालियर के सर्वे क्र. 916 रकवा .293 (1 बीघा 8 बिस्वा) सन् 1996 तक राजस्व अभिलेखों में राजस्व विभाग, कदीम, आबादी, पटोर नजूल के तौर पर दर्ज थी। सन् 1996 के पश्चात् कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से अवैधानिक तरीकों से तहसीलदार, ग्वालियर द्वारा बिना किसी वैधानिक आवेदन, बिना किसी प्रकरण दायर किये और शासन का पक्ष सुने स्व. माधवराव सिंधिया के नाम पर नामांतरित कर दी गई इस अवैध कार्य में तत्कालीन तहसीलदार ने माननीय उच्च न्यायालय, ग्वालियर की याचिका क्र.-61,62,63,64/1969 के आदेश दिनांक-08 सितम्बर 1981 के एक आदेश की भी अनुचित/अवैधानिक व्याख्या का दुरूपयोग करते हुये इस काम को अंजाम दिया जो एक गंभीर अपराध है, क्योंकि तहसीलदार न्यायालय को यह अधिकार न होकर प्रकरण लैण्ड रेवेन्यू कोड की धारा-57(2) के तहत यह अधिकार उपखंड अधिकारी एस.डी.ओ. को प्रदत्त है?
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इस नामांतरण के बाद श्रीमति माधवीराजे सिंधिया ने अपने पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया व पुत्री चित्रांगदाराजे की सहमति के साथ इस भूमि का विक्रय कर दिया। यहां यह उल्लेखनीय है कि महाराजा ग्वालियर की ओर से उक्त सर्वे नं. के संबंध में यह बताया गया है कि यह भूमि उनकी व्यक्तिगत संपत्ति है। हकीकत यह है कि भारत सरकार से हुये समझौते के अनुसार महाराजा ग्वालियर की जो व्यक्तिगत पूर्ण स्वामित्व व उपयोग की जो संपत्ति थी, जिसकी चार सूचियां प्रकाशित हुई उसके अनुसार उस सूची क्र. 4 के अनुक्रम 28 पर इस भूमि का विवरण “Samadhi of the remain of H.L.H Madhavrao Maharaja and Hass dog in the garden of Sardar Patankar Sahab.” के रूप में दर्ज और महलगांव के सर्वे क्र. 916 में स्थित है। वर्ष 1992-93 में सर्वे क्र.-916 शासकीय भूमि के रूप में दर्ज है तथा खाता नं. 12 कैफियत में कुत्ता समाधि दर्ज है और इसका कब्जा पी.डब्ल्यू.डी. के अधीक्षण यंत्री के आदेश पर कार्यपालक अभियंता पी.डब्ल्यू.डी. ने ले लिया था।
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माधवीराजे सिंधिया ने माननीय उच्च न्यायालय, ग्वालियर द्वारा पारित जिस उक्त प्रकरण क्रमांक का उल्लेख विक्रय पत्र में किया है जिसमें यह बताया गया है कि इसी आदेश के आधार पर सर्वे क्र.-916 हमें प्राप्त हुआ है, जो पूर्णतः गलत है,क्योंकि उच्च न्यायालय ने अपने प्रकरण में इस सर्वे नं. का कोई उल्लेख ही नहीं किया है। यह एक गंभीर किस्म की धोखाधड़ी भी है, यही नहीं यहाँ यह स्पष्ट करना भी आवश्यक है कि माधवराव सिंधिया के स्वर्गवासी होने के पश्चात उनके वारिसान का नामांतरण भी वैधानिक रूप से नहीं किया गया है।