CBI के हवाले गैंगरेप केस, दोषी पुलिसकर्मियों पर FIR, ग्वालियर चंबल रेंज से बाहर भेजने के आदेश

Atul Saxena
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ग्वालियर, अतुल सक्सेना। दलित नाबालिग (Dalit Minor) के साथ 31 जनवरी को हुए गैंगरेप (Gang Rep) के मामले में ग्वालियर हाईकोर्ट (Gwalior HC) ने एक बड़ा फैसला सुनाया है।  कोर्ट ने इस घटना में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए पुलिस को दोषी माना है। कोर्ट ने दोषी पुलिस अधिकारियों पर FIR करने और 50,000 रुपये को कॉस्ट लगाने के आदेश दिए।  इसके साथ ही हाईकोर्ट ने दोषी पुलिस अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से ग्वालियर चम्बल रेंज के बाहर ट्रांसफर करने के आदेश भी दिए।

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हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद अपने आदेश में ग्वालियर पुलिस (Gwalior Police) को इस मामले में पूरी तरह  दोषी माना है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के बजाय पुलिस ने उलटे फरियादिया पर उत्पीड़न किया ये गंभीर कृत्य है। हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस के रवैये को देखकर नहीं लगता कि पीड़िता को न्याय मिल सकेगा। इसलिए इस पूरे मामले को सीबीआई (CBI) के सुपुर्द किया जाये।

ग्वालियर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए मुरार थाने के टीआई अजय पावर और सब इंस्पेक्टर कीर्ति उपाध्याय सहित थाने के अन्य दोषी स्टाफ पर नाबालिग दलित लड़की और उसके परिवार के साथ मारपीट करने के मामल में FIR दर्ज करने के आदेश दिए। खास बात ये रही कि लड़की ने एक फरवरी को जिला न्यायालय में 164 के तहत पुलिस के खिलाफ अपने बयान भी दर्ज कराए थे। हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि चूँकि लड़की अनुसूचित जाति वर्ग से आती है इसलिए पुलिस अफसरों के खिलाफ दलित उत्पीड़न की धाराओं के तहत भी मामला दर्ज किया जाए। हाईकोर्ट ने पांच अधिकारियों के खिलाफ DGP को डिपार्टमेंटल इन्क्वारी के आदेश दिए हैं।

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इसके अलावा हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट ने एडिशनल एसपी सुमन गुर्जर, सीएसपी रामनरेश पचौरी, मुरार थाना  टीआई अजय पवार, सिरोल थाना टीआई प्रीति भार्गव, सब इंस्पेक्टर कीर्ति उपाध्याय को ग्वालियर चंबल रेंज से बाहर पदस्थ करने के आदेश भी दिए ।

हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए यह भी कहा है कि इस मामले में लिप्त पुलिस अफसरों पर 50 हजार रुपए की कॉस्ट भी लगाई जाती है, जो तुरंत ही पीड़िता को दिलवाया जाए। हाईकोर्ट ने दलित लड़की को स्वतंत्रता दी है कि वह अतिरिक्त मुआवजे के लिए न्यायालय में अलग से याचिका दायर कर सकती है।

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गौरतलब है कि उपनगर मुरार थाना क्षेत्र में 31 जनवरी को 16 साल की एक दलित नाबालिग लड़की के साथ आदित्य भदौरिया और एक अन्य ने दुष्कर्म किया था। आदित्य भदौरिया के दादा गंगा सिंह भदौरिया ने पुलिस से अपनी नजदीकी का लाभ उठाकर पीड़िता का ही उत्पीड़न किया और उस पर दबाव बनाया कि वह पुलिस में बलात्कार की रिपोर्ट वापस ले। लेकिन लड़की अड़ी रही। उधर आरोपियों को बचाने के लिए मुरार थाने स्टाफ ने भी नाबालिग पर दबाव बनाया उसे मारा पीटा लेकिन लड़की ने हिम्मत नहीं हारी।

खास बात ये रही कि लड़की ने एक फरवरी को जिला न्यायालय में 164 के तहत पुलिस के खिलाफ अपने बयान भी दर्ज कराए थे। हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि क्योंकि लड़की अनुसूचित जाति वर्ग से आती है। इसलिए पुलिस अफसरों के खिलाफ दलित उत्पीड़न की धाराओं के तहत भी मामला दर्ज किया जाए। मामले का एक और बड़ा पक्ष ये है कि वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल मिश्रा ने नाबालिग पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए मुफ्त में लड़ा।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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