सेना में महिला अफसरों के स्थाई कमीशन पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Kashish Trivedi
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नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। भारतीय सेना (Indian Army) में महिला अफसरों (Female officers) को स्थाई कमीशन (Permanent commission) देने पर आज सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने बड़ा फैसला सुनाया। इतना ही नहीं मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे समाज के नियम पुरुषों द्वारा पुरुष के लिए ही बनाए गए हैं अगर समय रहते इसे नहीं बदला गया तो महिलाओं को पुरुष के बराबर मौके नहीं मिल पाएंगे।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए सेना को 1 महीने के अंदर महिला अधिकारियों के लिए स्थाई कमीशन बनाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्थाई कमीशन के लिए महिला अफसरों के मेडिकल फिटनेस के मापदंड को तर्कहीन और मनमाना माना है।

ज्ञात हो कि भारतीय सेना की 17 महिला अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जहां आरोप लगाया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सेना द्वारा महिला अधिकारियों को 50% तक स्थाई कमीशन नहीं दिया जा रहा है। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 250 की सीलिंग को 2010 तक पार नहीं किया गया है। इसके साथ ही रिकॉर्ड में जिन आंकड़ों को पेश किया गया है वह बेंचमार्किंग को पूरी तरह से खत्म करते हैं।

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साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सर्विस का गोपनीय रिकॉर्ड मेंटेन करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाया जाए। वही मूल्यांकन की प्रक्रिया नए सिरे से तय की जाए। जिसमें किसी भी अधिकारी के साथ भेदभाव की स्थिति ना हो। इससे पहले भी इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 में यह फैसला सुनाया था कि सेना की उन सभी महिला अफसरों को 3 महीने के अंदर आर्मी में स्थाई कमीशन दिया जाए। जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं।

गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले आर्मी में 14 साल की सेवा के बाद शार्ट सर्विस कमीशन के तहत सिर्फ पुरुषों को ही स्थाई कमीशन का विकल्प मिल रहा था। जबकि महिला अधिकारियों के साथ ऐसा नहीं था। जबकि वायु सेना और नौसेना में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन पहले से दिया जा रहा था। शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत 14 साल की सेवा पूरी करने के बाद अधिकारी स्वेच्छा से अपने पद से रिटायर हो सकते हैं। इसके लिए वह स्थाई कमीशन में अप्लाई करते हैं।


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