व्यापार, डेस्क रिपोर्ट। बात जब भी म्यूचुअल फंड (Mutual fund) की होती है एक ही लाइन दिमाग में घूमती है कि म्यूचुअल फंड्स आर सब्जेक्ट टू मार्केट रिस्क। म्यूचुअल फंड्स के लिए तो यही कहा जाता है कि जितना फायदा लेना है रिस्क भी उतना ही लेना होगा, हालांकि कई लोग इस धारणा को गलत भी मानते हैं। मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि सही रणनीति के साथ काम किया जाए तो सीमित रिस्क के साथ अच्छा रिटर्न हासिल किया जा सकता है।
ऐसे आंके रिस्क लेने की क्षमता
इस मामले में सबसे कारगर स्ट्रेटजी ये मानी जाती है कि सबसे पहले ये देखें कि आप कितना जोखिम ले सकते हैं, अपनी क्षमता के अनुसार सही प्रोफाइल चुन कर निवेश के लिए आगे बढ़ें। एक आसान उदाहरण से ऐसे समझें कि जो लोग लंबे समय का निवेश करना चाहते हैं और कम रिस्क पर रहना चाहते हैं वो डेट और इक्विटी दोनों के फायदे समझने के साथ एक बैलेंस पोर्टफोलियो अपना सकते हैं।
सिस्टेमेटिक ट्रांसफर प्लान
इस प्लान को समझ कर आप समय के साथ म्यूचुअल फंड में इंवेस्ट करने के रिस्क को समझते हुए अपने निवेश को घटा और बढ़ा सकते हैं। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि मार्केट के इनफ्लेशन को समझ कर आप निवेश पर पड़ने वाले असर को समझ सकते हैं। मार्केट का ये मिजाज समझने के बाद आप निवेश को उसके अनुसार स्विच कर ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
अलग अलग फंड्स
निवेशक हमेशा अपनी सहनशीलता के अनुसार रिस्क का चुनाव करता है। जिसके आधार पर टाइम लिमिट और फाइनेंशियल गोल्स तय किए जाते हैं। इससे जो पोर्टफोलियो तैयार होता है उस पर मिलने वाले रिस्क और रिवॉर्ड को सही अनुपात में एसेट क्लास और सेक्टर में बांट देना चाहिए। निवेशक अपने फाइनेंशियल गोल्स के आधार पर अलग अलग तरह के फंड्स को शामिल कर सकते हैं।
Disclaimer : यहाँ दी गई जानकारियां एक्सपर्ट की राय पर आधारित है, लेकिन आपको इस बात का अवश्य ध्यान रखना होगा कि Mutual Funds Are Subject to Market Risk.