कर्मचारियों के लिए हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, राज्य शासन को मिले निर्देश- समय पर हो वेतन-मानदेय का भुगतान

Kashish Trivedi
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गांधीनगर, डेस्क रिपोर्ट। राज्य सरकार (State Government) के इन कर्मचारियों (Employees)  के मानदेय (honorarium)-वेतन भुगतान (salary payment) का मामला एक बार फिर से गड़बड़ा गया है। जिसके बाद मामला हाईकोर्ट में पहुंच गया। राज्य के कर्मचारी के मानदेय भुगतान और नियमितीकरण पर अब हाईकोर्ट ने कर्मचारी के लिए बड़ा फैसला दिया है। दरअसल कहा गया है कि कर्मचारी के निर्धारित मानदेय का भुगतान जल्द से जल्द सरकार द्वारा किया जाना चाहिए और उनके नियमितीकरण पर विचार करना चाहिए।

गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव ने औद्योगिक न्यायाधिकरण के उस आदेश को यथावत रखा है जिसमें राज्य याचिकाकर्ता के अधिकारियों को सफाईकर्मी कर्मचारियों को नियमित करने का निर्देश दिया था जो पिछले तीस वर्षों से प्रतिदिन चार घंटे से अधिक काम कर रही थी। ट्रिब्यूनल ने निर्देश दिया था कि राज्य कर्मचारी के कार्यकाल की अवधि को देखते हुए बहाली की तारीख से सभी बकाया राशि का भी भुगतान उन्हें किया जाए।

मामले के तथ्य यह थे कि कार्यकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिवादी-संघ ने एक औद्योगिक विवाद उठाया कि कार्यकर्ता को 30 साल की सेवा पूरी करने और सुबह 10 बजे से शाम 6:30 बजे तक स्थापना के लिए काम करने के बावजूद याचिकाकर्ता-राज्य को पूर्णकालिक कर्मचारी से वंचित कर दिया गया था। राज्य याचिकाकर्ता ने ट्रिब्यूनल के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि कार्यकर्ता को स्थायी सेट-अप पर नियुक्त नहीं किया गया था, लेकिन जब भी काम हुआ, उसने काम किया।

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वहीँ कर्मचारी को1 उन्हें आकस्मिक निधि के माध्यम से भी भुगतान किया गया था। उसकी नियुक्ति भर्ती की प्रक्रिया के अनुसार नहीं थी और इसलिए, वह नियमितीकरण की हकदार नहीं थी। विवाद को मजबूत करने के लिए अल्जेमीन बैंक नीदरलैंड, एनवी बनाम केंद्र सरकार 1978 II एलएलजे, यूपी राज्य बनाम पीओ लेबर कोर्ट और अन्य उदाहरणों पर भरोसा किया गया था।

इधर हाई कोर्ट न्यायमूर्ति वैष्णव ने कहा कि कर्मचारी को कोई नियुक्ति आदेश नहीं दिया गया था लेकिन ट्रिब्यूनल ने देखा था कि कर्मचारी द्वारा पूर्णकालिक काम किया गया। यह बताने के लिए कोई सबूत नहीं था कि वह दिन में केवल दो घंटे काम कर रही थी जैसा कि राज्य याचिकाकर्ता ने विरोध किया था। इसके अलावा, काम की प्रकृति और सीमा यानी शौचालय की सफाई, बर्तन धोना, पानी परोसना, बिजली कंपनी के डाकघर, बिजली कंपनी के कार्यालय में बिलों का भुगतान करने के लिए जाना यह दर्शाता है कि वह लंबे समय तक काम कर रही थी।

इसके अतिरिक्त उसी सेटअप में एक नियमित कर्मचारी का पद मौजूद था लेकिन वह खाली था। इन सबूतों और तर्कों के आधार पर ट्रिब्यूनल ने नियमितीकरण का निर्देश दिया था। हालांकि उच्च न्यायालय ने नियमितीकरण के लाभ देने में कमी की, लेकिन केवल निर्देश दिया कि कार्यकर्ता को भुगतान के निर्देश दिए। खासकर जब राज्य याचिकाकर्ता द्वारा भर्ती की नियमित प्रक्रिया शुरू की जाती है। हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के आदेश से सहमति जताते हुए याचिका खारिज कर दी।


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