भोपाल। विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बुंदेलखंड में भी नुकसान हुआ। बुंदेलखंड में पांच जिले और 26 विधानसभा सीटें हैं। इस बार बुंदेलखंड में जिन तीन बड़ी सीटों पर लंबे समय से भाजपा का कब्जा है उन सीटों पर इस बार हार का खतरा मंडरा रहा है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट बैंक को इसी इलाके में बड़ा नुकसान हुआ है। ऐसे में टीकमगढ़, खजुराहो और दमोह सीट पर भाजपा को प्रत्याशी चयन में बहुत सावधानी बरतनी होगी अन्यथा इन सीटों पर विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी अंदरूनी गुटबाजी और सत्ता विरोधी लहर के कारण परिणाम नुकसानदेह साबित हो सकता है।
लोगों से दूरी ने घटाया खटीक का प्रभाव
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मोदी सरकार में राज्यमंत्री वीरेंद्र खटीक पिछले एक दशक से टीकमगढ़ के सांसद हैं। लेकिन लगातार उनके और जनता के बीच दूरियां बढ़ रही हैं। लोकसभा क्षेत्र के सांसद अपने लोगों के बीच में रहते तो हैं, लेकिन उल्लेखनीय कार्य नहीं कर पाते। यहां तक कि केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार भी यहां कोई बड़ी योजना नहीं ला पाए हैं। उनके पास इस बार जनता के बीच जाकर अपने उपलब्धियां गिनाने के नाम पर सिर्फ महामना एक्सप्रेस लाना को छतरपुर से शुरू करना ही जाता है। सूत्रों के मुताबिक इस बार वोटरों में उनके खिलाफ भारी नाराजगी है। विधानसभा चुनाव में भी उनका काफी विरोध हुआ था। बहरहाल इस सीट पर भाजपा के ही आरडी प्रजापति पिछले दो महीने से दिन रात चुनाव प्रचार कर रहे हैं। उनके अलावा मंडी अध्यक्ष बृजेश राय, टीकमगढ़ से परवत लाल अहिरवार एवं उत्तरप्रदेश की भारती आर्य भी इस सीट पर निगाहें गड़ाए हुए हैं।
खजुराहो और दमोह में भी नहीं हुआ विकास
2014 में मोदी लहर में कई आम नेता भी सांसद और विधायक बने। लेकिन पांच सालों में उन्होंने क्या काम किए इसको लेकर उनके पास कोई खास काम बताने के लिए नहीं है। खजुराहो से सांसद नागेंद्र सिंह अब विधायक हैं। इसलिए यह सीट अब खाली हो चुकी है। पार्टी के पास अब दूसरा कद्दावर चेहरा चुनने की चुनौती है। सांसद रहते हुए उनके नाम पर एक भी उपलब्धी नहीं है। छतरपुर जिले की दो विधानसभाएं राजनगर एवं चंदला इस लोकसभा सीट का हिस्सा हैं। दुर्भाग्य से इन दोनों सीटों पर कभी कभार ही सांसद के दर्शन हुए। कुछ कार्यकर्ताओं ने तो उनके लापता होने के पोस्टर भी चिपका दिए थे। यही हाल दमोह लोकसभा सीट से सांसद प्रहलाद पटेल का है। छतरपुर जिले से इस सीट की सिर्फ एक विधानसभा सीट बड़ामलहरा शामिल होती है। इस विधानसभा में प्रहलाल पटेल का आना-जाना तो रहा लेकिन क्षेत्र में पलायन, पेयजल संकट, किसानों की समस्याओं को वे दूर नहीं कर सके। जिसको लेकर जनता उनका भी विरोध कर सकती है।